अध्यात्म

आज है मंगला गौरी व्रत, व्रत करने से मिलता है अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद, इस तरह से करें पूजा

सावन के महीने की अपनी ही ख़ासियत है। इस महीने में देवी-देवताओं को पप्रसन्न करने के कई मौक़े बनते हैं। ख़ासतौर से इस महीने में भगवान शिव को बहुत आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। सावन के महीने की महिमा का गुणगान नहीं किया जा सकता है। सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना के साथ ही अन्य देवी-देवताओं की उपासना करने से भी काफ़ी लाभ होता है। सावन महीने की शुरुआत हो चुकी है और जगह-जगह शिवभक्तों का ताँता देखा जा सकता है।

सावन के महीने में सोमवार को भगवान शिव की पूजा की जाती है, वहीं सावन के महीने में पड़ने वाले हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जात हाई। आज 31 जुलाई को सावन का पहला मंगलवार है और आज पहला मंगला गौरी व्रत है। विशेष रूप से यह व्रत नवविवाहिताएँ करती हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार विवाह के पाँच साल बाद तक यह व्रत हर महिला को करना चाहिए। इससे माता प्रसांन होकर अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान देती हैं। इस व्रत को इस तरह से करना चाहिए।

व्रत करने की विधि:

मंगलवार के दिन सुबह जल्दी जागकर संकल्प लें-

*- मैं पुत्र, पौत्र, सौभाग्य वृद्धि और श्री मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत का संकल्प लेती हूँ।

*- इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उसपर माँ मंगला गौरी यानी पार्वती की जी प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

*-अब माता पार्वती के सामने आटे से बना हुआ एक सोलह बत्तियों वाला दीपक जलाएँ।
दीपक जलाने के बाद यह मंत्र “कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।।” बोलें।

*- अब माता गौरी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजा करने के बाद माता को सोलह माला, लड्डू, फल, पान, इलायची, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान और मिठाई चढ़ाएँ।

*- इसके बाद मंगला गौरी की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद सोलह लड्डू अपनी सास को एवं अन्य चीज़ें किसी ब्राह्मण को दान कर दें।

*- कथा सुनने के बाद सोहल बत्तियों वाले दीपक से माता की आरती करें। जब सावन का महीना ख़त्म हो जाए तो मंगला गौरी के चित्र या मूर्ति को किसी नदी में प्रवाहित कर दें।

*- लगातार पाँच साल तक मंगला गौरी की पूजा करने के बाद पाँचवें साल सावन महीने के अंतिम मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन कर दें।

बहुत समय पहले किसी स्थान पर धर्मपाल नाम का एक सेठ रहा करता था। वह योग्य पत्नी और धन वैभव के कारण सुखी से जीवन यापन कर रहा था। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। इसी वजह से वह बहुत दुखी रहता था। भगवान की कृपा से उसे एक अल्पायु पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को सोलह वर्ष की आयु में साँप काटने से मृत्यु होने का श्राप था। सका विवाह एक ऐसी लड़की से हो गया, जिसकी माँ ने मंगला गौरी व्रत किया था। इस व्रत की वजह से लड़की को विधवा का दुःख हो ही नहीं सकता था। इस वजह से धर्मपाल के पुत्र को लम्बी आयु प्राप्त हुई। इसी वजह से मंगला गौरी व्रत का विशेष महत्व माना जाता है।

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