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भारत से ब्रिटेन कैसे पहुंचा कोहिनूर? जाने दुनिया के सबसे महंगे हीरे की दिलचस्प कहानी

कोहिनूर हीरा दुनियाभर में फेमस है । यह करीब 170 साल से ब्रिटेन में है। हालांकि यह लगभग 800 सालों से एक देश से दूसरे देश घूम रहा है। दिलचस्प बात ये है कि इसे अभी तक बेचा या खरीदा नहीं गया है। बल्कि इसे या तो आक्रमण कर छीना गया है या फिर तोहफे में दिया गया है। यह सबसे पहले भारत की मिट्टी की खुदाई से निकला था। हाल ही में ब्रिटेन के एक टीवी पत्रकार ने लाइव बहस में इसे भारत को लौटाने की बात कहकर इसकी चर्चा और भी गर्म कर दी। तो चलिए इस हीरे का भारत से इंग्‍लैंड तक का दिलचस्प सफर देख लेते हैं।

सबसे पहले भारत में मिला था कोहिनूर

कोहिनूर हीरा सबसे पहले 800 साल पूर्व आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिला स्थित गोलकुंडा की खदान में 13 फीट की खुदाई से मिला था। तब यह दुनिया का सबसे बड़ा हीरा था जो कि 186 कैरेट था। लेकिन बाद में इसे कई बार तराशा गया और ये 105.6 कैरेट रह गया। हालांकि ये आज भी विश्व का सबसे बड़ा तराशा हीरा है। चुकी इसे कभी बेचा या खरीदा नहीं गया इसलिए इसकी आधिकारिक कीमत तय नहीं है। लेकिन एक आकलन किया जाए तो ये करीब 1 अरब डॉलर (8 हजार करोड़ रुपये) कीमत का है।

कोहिनूर हीरे के पहले मालिक काकतिय राजवंश थे। गोलकुंडा की खदान से निकलने के बाद उन्होंने इसे पनी कुलदेवी भद्रकाली की बांईं आंख में लगाया था। फिर अलाउद्दीन खिलजी ने 14वीं शताब्‍दी में आक्रमण कर इसे लूट लिया। बाद में पानीपत युद्ध हुआ जिसमें मुगल संस्‍थापक बाबर ने आगरा और दिल्‍ली किले पर जीत हासिल कर इसे छिन लिया।

ऐसे भारत से बाहर गया कोहिनूर

1738 में ईरानी शासक नादिर शाह आया और वह 13वें मुगल बादशाह अहमद शाह को हराकर पहली बार इसे भारत के बाहर ले गया। उसने इसे मुगलों से लूटे मयूर तख्‍त में जड़वा दिया। हीरे का नाम कोहिनूर नाम भी नादिर शाह ने रखा। कोहिनूर का अर्थ है ‘रोशनी का पहाड़’। हीरे का अगला मालिक नादिर शाह का पोता शाहरुख मिर्जा था। शाहरुख ने इसे अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी को एक मदद के बदले तोहफे में दिया था।

दुर्रानी से ये हीरा उसके पोते सूजा शाह दुर्रानी को मिला। वह इसे ब्रेसलेट में जड़वाकर पहनता था। सूजा शाह जब पेशावर (पाकिस्‍तान) गया तो सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने इसे 1813 में छिन लिया। इस तरह कोहिनूर घूम फिरकर फिर भारत आ गया। कहा जाता है कि  रणजीत ने हीरे के बदले सूजा को 1.25 लाख रुपये दिए थे। इस बीच अंग्रेज और सिखों के बीच पहला युद्ध हुआ। हार के बाद गुलाब सिंह जम्‍मू-कश्‍मीर का पहला राजा बना।

ब्रिटेन को ऐसे मिला कोहिनूर

29 मार्च, 1849 को सिखों और अंग्रेजों के बीच दूसरा युद्ध छिड़ गया। इसके बाद सिखों का शासनकाल समाप्त हो गया। इस दौरान महाराजा की बाकी संपत्तियों के साथ कोहिनूर भी क्‍वीन विक्‍टोरिया के पास पहुंच गया। 1850 में इसे बकिंघम पैलेस लाकर महारानी विक्‍टोरिया को दिखाया गया। यहां डच फर्म कोस्‍टर ने हीरे की 38 दिनों तक नकाशी की और इसे महारानी के ताज में जड़ दिया।

जब 1947 में देश आजाद हुआ तो भारत ने ब्रिटेन से हीरा वापस मांगा। लेकिन इस लिस्ट में पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान और तालिबान भी अपना दावा करने खड़े हो गए। 2000 में भारतीय संसद ने कोहिनूर वापस लाने का प्रयास भी किया। हालांकि अंग्रेज अधिकारियों ने यह बोलकर पल्ला झाड दिया कि बहुत से देश इस पर अपना दावा कर रहे हैं। इसलिए इसके असली मालिक का पता लगाना नामुमकिन है। इस कारण इसे ब्रिटेन में ही रखना सही होगा।

वैसे ब्रिटेन ये दावा भी करता है कि वह कनूनी रूप से इसका हकदार है। दरअसल लाहौर की आखिरी संधि में इस हीरे को अंग्रेजों को सौंपे जाने का उल्लेख है। वैसे वर्तमान में मोदी सरकार इस बेशकीमती हीरे को फिर से भारत लाने का भरपूर प्रयास कर रही है।

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