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लोकसभा चुनाव 2019 : अब तक का सबसे महंगा चुनाव रहा इस बार, हर वोटर पर खर्च इतने रुपये

लोकसभा चुनाव-2019 खत्म हो गया है और विजेता पार्टी ने अपनी प्रचंड लहर एक बार फिर साबित कर दी है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी का मान ना सिर्फ देश बल्कि विदेश में भी बढ़ गया लेकिन इन सबके बीच खर्चा बहुत ज्यादा हो गया. चुनाव प्रचार करने में पार्टी के मुख्य नेताओं की मेहनत के साथ ही अरबों रुपये भी लग जाते हैं. मेहनत सभी पार्टीज ने बराबर की लेकिन जीत का आंकड़ा विपक्ष पार्टी यानी कांग्रेस बीजेपी के आस-पास भी नहीं आ पाई. मगर एक बात जरूर सामने आई कि अब तक का सबसे महंगा चुनाव रहा इस बार, चलिए बताते हैं पूरी डिटेल.

अब तक का सबसे महंगा चुनाव रहा इस बार

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जितना भी रुपया खर्च हुआ है वो अब तक का सबसे महंगा चुनाव रहा है. सात चरणों मे 75 दिनों चक चलने वाले इन चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये का खर्च हुआ है ऐसा चुनाव आयोग का अनुमान है. साल 2014 में 30,000 करोड़ करोड़ रुपये खर्च हुए थे जो अब पांच सालों में दो गुना बढ़ गया है चुनाव खर्च का यह अनुमान सेंटर फार मीडिया स्टडीज (सीएमएस) ने लगाया है. सीएमएस ने सोमवार को अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि 542 लोकसभा सीटों पर हुए चुनावों में करीब 100 करोड़ रुपये प्रति संसदीय सीट पर खर्च हुए हैं. अगर वोटर के हिसाब से गिना जाए तो यह 700 रुपये प्रति वोटर पर आएगा. इन चुनावों में लगभग 90 करोड वैध वोटर थे. सीएमएस ने अनुमान लगाया कि इन चुनावों में 12 से 15000 करोड़ कुपये सीधे वोटरों में वितरित किए गए. दक्षिण भारत के राज्यों आंध्र, तेलंगना में वोटरों को दो दो हजार रुपये तक रिश्वत के तौर पर दिए गए. राजनैतिक दलों ने चुनाव प्रचार में 20 से 25 हजार करोड़ रुपये खर्च किए तो दूसरी ओर चुनाव आयोग ने इन चुनावों में 10 से 12000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.

वहीं 6000 करोड़ रुपये दूसरी बातों पर खर्च हुए हैं. चुनाव खर्च का यह अनुमान भर है. चुनाव लड़ने वाले विभिन्न दलों और प्रत्याशियों को अभी अपने चुनाव खर्च का हिसाब राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग को देना है. चुनाव होने के 90 दिनों के अंदर चुनाव खर्च का ब्योरा आयोग को देना होगा, हालांकि आयोग को दिया जाने वाला खर्च का यह हिसाब कागजों पर हुआ खर्च होगा, वो वास्तविक नहीं है. इस मौके पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने बताया कि अगर राजनीति के अपराधीकरण और पैसे के जोर को नहीं रोका गया तो हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि अगला चुनाव निष्पक्षता तथा पारदर्शिता के मामले में 2019 के चुनावों से बेहतर होगा.

पिछले 20 सालों में छह चुनावों का खर्च

1998 – 9000 करोड़ रुपये
1999- 10000 करोड़ रुपये
2004 -14000 करोड़ रुपये
2009 -20000 करोड़ रुपये
2014 – 30 000 करोड़ रुपये
2019 – 60000 करोड़ रुपये (अनुमानित)

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