अध्यात्म

आखिर गंगा में स्नान से क्यों होता है पापों का नाश? पार्वती के सवाल पर शिवजी ने दिया था ये जवाब

जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है हिंदू धर्म के अनुसार भी गंगा में स्नान करने से मानव के सभी पापों का नाश होता है लगभग आप सभी लोग इस विषय में तो जानते ही होंगे परंतु कभी आप ने इस विषय पर गौर किया है कि आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि अगर पापों से मुक्ति पाना है तो गंगा स्नान कीजिए? आखिर ऐसा क्यों माना जाता है कि मानव जीवन के सभी पापों का नाश गंगा में स्नान करने से ही होता है? शायद हम लोगों में से कोई व्यक्ति होगा जिसने इस बारे में विचार किया होगा आखिर ऐसा क्यों और कैसे हो सकता है? तो चलिए आज हम आपको नित्य गंगा स्नान करने वालों को किस प्रकार अपने पापों से मुक्ति मिलती है इस बारे में एक बहुत ही रोचक बात बताने वाले हैं।

एक कथा के अनुसार एक समय भगवान शिव जी माता पार्वती जी के साथ हरिद्वार में घूम रहे थे पार्वती जी ने देखा कि सभी लोग गंगा में नहा नहाकर हर हर कहते चले जा रहे हैं परंतु प्राय सभी दुखी और पाप परायण है पार्वती जी ने बड़े ही आश्चर्य से भगवान शिव जी से यह सवाल पूछा कि हे देव! गंगा में इतनी बार स्नान करने पर भी इनके पाप और दुखों का नाश क्यों नहीं हुआ क्या गंगा में सामर्थ्य नहीं रहा है? तब माता पार्वती जी के इस प्रश्न पर शिवजी ने कहा, गंगा में तो वही सामर्थ्य है परंतु इन लोगों ने पाप नाशिनी गंगा में स्नान ही नहीं किया है तब इनको लाभ कैसे प्राप्त हो सकता है?

जब भगवान शिव जी ने माता पार्वती जी के सवाल का उत्तर दिया तब माता पार्वती जी ने बड़े आश्चर्य से कहा कि स्नान कैसे नहीं किया सभी तो नहा नहा कर आ रहे हैं? अभी तक इनका शरीर भी नहीं सुखा है, तब शिवजी ने माता पार्वती से कहा यह केवल जल में डुबकी लगा कर आ रहे हैं तुम्हें कल इसका रहस्य जरूर समझा दूंगा, तब दूसरे दिन बहुत जोर से वर्षा होने लगी थी गलियां कीचड़ से भर गई थी एक चौड़े रास्ते में एक गहरा गड्ढा था चारों ओर कीचड़ भरा हुआ था शिव जी ने अपनी लीला से एक वृद्ध का रूप धारण कर लिया और उस गड्ढे में जा कर ऐसे पड़ गए जैसे कोई मनुष्य चलता चलता गड्ढे में गिर जाता है और निकलने की कोशिश करने लगे और वह निकल नहीं पा रहे थे।

भगवान शिव जी ने माता पार्वती जी को यह समझा कर गड्ढे के पास बैठा दिया था कि तुम लोगों को जोर जोर से यह सुनाती रहो कि मेरे वृद्ध पति अचानक गड्ढे में गिर पड़े हैं कोई भी पुण्य आत्मा इनको आकर निकालें और इनकी जान बचाए और मेरी सहायता करें, इसके साथ ही भगवान शिव जी ने यह बात और समझा दी थी कि जब कोई गड्ढे में से मुझे निकालने को तैयार हो तब इतना और कह देना कि भाई मेरे पति सर्वथा निष्पाप हैं इन्हें वही छुए जो स्वयं निष्पाप हो यदि आप निष्पाप है तो इनके हाथ लगाएं अन्यथा आप हाथ लगाते ही भस्म हो सकते हैं।

तब माता पार्वती उस गड्ढे के किनारे पर बैठ गई और आने जाने वाले लोगों को पुकारने लगे भगवान शिव जी की सिखाई हुई बात वह कहने लगी सभी लोग गंगा में स्नान करके आ रहे थे सुंदर महिला को यूं ही देखकर काफी लोगों के मन में पाप आया और कई लोग लज्जा से डरे तो कई लोगों में तो धर्म का भय हुआ और कई लोग कानून से डरने लगे और कई लोगों ने तो पार्वती जी को यहां तक सुना दिया की मरने दे बुड्ढे को क्यों उसके लिए रोती है एक पुरुष ने करुणा वश उनके पति को निकालने की चेष्टा की परंतु पार्वती के वचन सुनकर वह भी रुक गया उन्होंने सोचा कि हम गंगा में नहा कर आए हैं तो क्या हुआ पापी तो है ही, कहीं हम हाथ लगाते ही भस्म ना हो जाए इसके बाद उसको बिल्कुल भी साहस नहीं हुआ बहुत से लोग आए और पूछे और चले गए संध्या हो चली शिव जी ने कहा पार्वती देखा? आया कोई भी गंगा में स्नान करने वाला।

कुछ समय पश्चात एक जवान हाथ में लोटा लिए हर हर करता हुआ निकला पार्वती ने उसे भी वही बात कही, युवक का हृदय करुणा से भर आया और उसने भगवान शिव जी को निकालने की तैयारी में लग गया पार्वती ने रोक कर कहा कि भाई यदि तुम सर्वथा निष्पाप नहीं होगे तो मेरे पति को छूते ही भस्म हो जाओगे तब उसने बिना संकोच किए दृढ़ निश्चय के साथ पार्वती से कहा कि माता, मेरे निष्पाप होने में तुम्हें संदेश क्यों होता है देखती नहीं मैं अभी गंगा नहा कर आया हूं भला गंगा में गोता लगाने के पश्चात भी कभी पाप रहते हैं मैं तेरे पति को अभी निकालता हूं तब युवक ने लपक कर बूढ़े को ऊपर उठा लिया शिव पार्वती ने उसे अधिकारी समझ कर अपना असली स्वरूप प्रकट करके उसको दर्शन दिए तब भगवान शिव जी ने माता पार्वती को कहा कि देखा इतने लोगों में से एक ही ने गंगा स्नान किया है।

इसीलिए जो व्यक्ति बिना श्रद्धा और विश्वास के केवल नाम के लिए गंगा स्नान करते हैं उन व्यक्तियों को कभी भी वास्तविक फल की प्राप्ति नहीं हो पाती है इसका मतलब यह नहीं है कि गंगा स्नान व्यर्थ जाता है।

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