अध्यात्म

गरुड़ पुराण के अनुसार, ऐसे 10 लोगों के घर भूलकर भी नहीं करना चाहिए भोजन

एक पुरानी कहावत है, ‘जैसे खाओ अन्न वैसा होगा मन’, यानी कि आप जिस तरह का जैसा भोजन ग्रहण करते हैं, वैसे ही आपके सोच और विचार बनते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण महाभारत में देखने को मिलता है, अर्जुन की बाणों से घायल भीष्म पितामह शैय्या पर पड़े होते हैं और उनसे द्रोपदी पूछती है “आपने भरी सभा में मेरे चीरहरण का विरोध नहीं किया जबकि आप कुल में सबसे बड़े और सबसे सशक्त थे।” तब भीष्म पितामह कहते है कि उस वक़्त में अधर्मी कौरवों का अन्न खा रहा था ऐसे में मेरे विचार भी उनके जैसे ही दुषित हो गए थें और मुझे उनके कृत्य में कुछ गलत नज़र नहीं आया। दरअसल मनुष्य जिसका अन्न ग्रहण करता है उसके विचार भी उससे प्रभावित होते हैं और परिणाम स्वरूप उसका उचित-अनुचित फल भी उसे मिलता है। इसलिए सोच समझकर ही किसी का अन्न ग्रहण करना चाहिए। इस सम्बंध में गरुड़ पुराण का आचार कांड हमारा उचित मार्गदर्शन करता है और बताता है कि हमें किन लोगों के यहां भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए। दरअसल गरुण पुराण की माने तो हमें 10 तरह के लोगों के घर पर भूलकर भी भोजन नहीं करना चाहिए… जैसे कि

गरुण पुराण के अनुसार कभी भी चोर या अपराधी किस्म के लोगों के घर का भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनका भोजन ग्रहण करने से आप भी उनके पापों के भागीदार बनते हैं और उनके पापों का असर आपके जीवन पर भी पड़ सकता है।

वहीं गरुण पुराण में चरित्रहीन स्त्री यानी जो अपनी स्वेच्छा से पूरी तरह अधार्मिक आचरण करती है, के हाथों बने भोजन को ग्रहण करने से मना किया गया है, गरुड़ पुराण की माने तो जो व्यक्ति ऐसी स्त्री के हाथों भोजन करते हैं, वो उसके द्वारा किए गए कृत्यों का फल प्राप्त करते हैं।

वहीं जो लोग दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए कर्ज देकर अनुचित रूप से अत्यधिक ब्याज हासिल करते हैं, गरुड़ पुराण की माने तो ऐसे लोगों के घर पर भी भोजन करना अहितकारी होता है। दरअसल धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो गलत ढंग से कमाया गया धन अशुभकारी होता है, ऐसे में इस धन का अन्न ग्रहण करना हितकारी नहीं हो सकता।

वहीं अगर कोई व्यक्ति छूत के रोग का मरीज है तो गरुणपुराण के अनुसार उसके घर भी भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्ति का दिया भोजन ग्रहण करने से हम भी उस बीमारी के गिरफ्त में आ सकते हैं। वैसे ये वैज्ञानिक दृष्टि से भी सही हैं , क्योंकि संक्रमण वाले रोग से बचाव में ही भलाई होती है।

वहीं क्रोधी व्यक्ति का अन्न ग्रहण करने से भी शास्त्रों में मना किया गया है, क्रोध व्यक्ति का विवेक छीन लेता है और ये इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है। ऐसे में अगर हम किसी क्रोधित स्वभाव वाले व्यक्ति के यहां भोजन करते हैं रहते हैं, तो उसके प्रभाव से हमारे अंदर भी क्रोध के गुण आ सकते हैं, जो कि हमारे लिए बेहद हानिकारक हो सकता है।

गरुड़ पुराण के अनुसार किन्नरों को दान देना तो बेहद पुण्यकारी है, पर वहीं इनके यहां भोजन नहीं करना अनिष्टकारी हो सकता है। दरअसल किन्नर कई तरह के लोगों से दान में धन प्राप्त करते हैं, इन्हें दान देने वालों में अच्छे-बुरे, दोनों तरह के लोग होते हैं, इस तरह कमाया धन भी शुभकारी नहीं होता है और इसी कारण इनका अन्न ग्रहण करना भी सही नहीं माना जाता।

वहीं अगर कोई व्यक्ति निर्दयी और दुष्ट प्रवृति का है तो उसके घर का भी भोजन भी भूलकर ग्रहण नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसे लोगों के प्रभाव से हमारा स्वभाव भी वैसा ही बना सकता है।

गरुण पुराण के अनुसार अगर कोई राजा निर्दयी है और अपनी प्रजा को कष्ट देता है तो उसके यहां भी भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि राजा का धर्म है कि अपनी प्रजा का ध्यान रखना और ऐसा ना करके वो अधर्म करता है, ऐसे में उसका अन्न भी ग्रहण करने योग्य नहीं होता।

शास्त्रों के अनुसार चुगली करना भी बुरी आदत है। ऐसे व्यक्ति दूसरों को परेशानियों से स्वयं आनंद उठाते हैं। ऐसे में इस काम को भी पाप की श्रेणी में रखा गया है। इसलिए ऐसे लोगों का दिया भोजन भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।

चूकि नशा करना भी पाप माना जाता है, ऐसे में जो लोग नशीली चीजों का व्यापार करते हैं, गरुड़ पुराण के अनुसार उनके घर भोजन करना भी वर्जित है।

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