अध्यात्म

भोलेबाबा का चमत्कारिक मंदिर जहां शिवलिंग खुद हुआ था प्रकट, मौली बांधने से मुरादें होती है पूरी

भगवान शिव जी सही मायने में बहुत ही भोले हैं यह अपने भक्तों की थोड़ी भक्ति से ही बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और इनकी महिमा भी अपरंपार है ऐसा बताया जाता है कि जो भक्त अपने सच्चे मन से भोलेनाथ की भक्ति करता है उसके ऊपर भोलेनाथ का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है, भोलेनाथ को प्रसन्न करना बहुत ही सरल सरल है, जो भक्त अपने सच्चे मन से इनको एक लोटा जल भी अर्पित कर दे तो यह उतने में ही अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाते हैं, पुराणों में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि जो भक्त अपने सच्चे मन से भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता है उसको मन मुताबिक फल की प्राप्ति होती है, ऐसे बहुत से लोग हैं जो भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए बहुत से उपाय करते हैं और तरह-तरह की विधियों के साथ इनकी पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे भोलेनाथ की कृपा उनको प्राप्त हो सके।

वैसे देशभर में भगवान शिव जी के बहुत से मंदिर मौजूद है जो अपने अपने चमत्कार के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है परंतु आज हम आपको भोलेनाथ के एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिस मंदिर से आज तक कोई भी भक्तों खाली हाथ नहीं लौटा है इस मंदिर के अंदर शिवलिंग अपने आप प्रकट हुआ था और यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

आज हम आपसे जिस मंदिर के बारे में चर्चा कर रहे हैं यह मंदिर पंजाब के राजपुरा में स्थित है, भगवान शिव जी का यह प्राचीन मंदिर नलास में है, इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर के अंदर जो शिवलिंग मौजूद है वह स्वयं प्रकट हुआ था, वर्षभर भगवान शिव जी के इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है परंतु सावन और शिवरात्रि के समय इस मंदिर का विशेष महत्व माना गया है, इस मंदिर के अंदर भारी संख्या में लोग अपनी मनोकामना मांगने के लिए आते हैं, भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर 550 साल पुराना बताया जाता है, इस मंदिर के अंदर हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है।

भगवान शिव जी के इस प्राचीन मंदिर के परिसर में 140 फुट ऊंचा त्रिशूल स्थापित है और इसी स्थान पर भगवान भोलेनाथ की 108 फुट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित है यहां पर जो भक्त आते हैं उनका ऐसा कहना है कि मंदिर प्रांगण में लगे हुए 500 वर्ष पुराने बोहड़ के पेड़ पर जो भी शिव भक्त अपने सच्चे मन से लाल धागा या मौली बांधकर अपनी मनोकामना मांगता है उसकी सभी मनोकामनाएं भोलेनाथ अवश्य पूरी करते हैं इस मंदिर के प्रति लोगों का अटूट विश्वास देखने को मिलता है जो भक्त अपनी मनोकामना लेकर आया है वह आज तक भोलेनाथ के दर से कभी निराश नहीं लौटा है लोग अपनी परेशानियां लेकर यहां आते हैं परंतु अपने चेहरे पर खुशी लेकर जाते हैं।

इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि नलास गांव में एक गुर्जर के पास कपिला गाय थी जब वह गाय जंगल में चरने के लिए जाती थी तो घर वापस आने से पहले वह एक झाड़ी के पीछे जाती थी जब वह झाड़ी के पीछे जाती थी तब उसका दूध अपने आप बहने लगता था जब उसका थन खाली हो जाता था तब वह घर वापस आ जाती थी एक बार इस गाय के मालिक ने गुस्से में आकर उस झाड़ी की खुदाई करवा दी, खुदाई करने के दौरान वहां से शिवलिंग पर जब कस्सी का प्रहार हुआ तो उसमें से रक्त की धारा बहने लगी थी ऐसा बताया जाता है कि उस समय वटवृक्ष के नीचे स्वामी कर्म गिरी तपस्या कर रहे थे जिसकी वजह से उनकी तपस्या भंग हो गई थी उस समय के महाराजा पटियाला कर्म सिंह को यह सारी बात बताई गई और वहां पर खुदाई करवाई गई थी तब यह शिवलिंग अपने आप प्रकट हुआ था 1592 में महाराजा पटियाला ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

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