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हिंदी दिवस स्पेशल: जानिए हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की कोशिश में कुछ नामचीन साहित्यकारों की राय

किसी भी देश के विकास में उसकी भाषा का बड़ा योगदान होता है। किसी भी देश की भाषा आम आदमी की भाषा होती है। बात की जाए भारत के राष्ट्र भाषा की तो भारत की कोई आधिकारिक राष्ट्र भाषा नहीं है। जबकि कई विकसित राष्ट्रों ने अपनी आधिकारिक राष्ट्रभाषा बनाई है। इसमें अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। हालांकि भारत में हिन्दी से जुड़े तमाम लोगों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास किया लेकिन वे इस प्रयास में सफल नहीं रहे।

हिंदी की बात करें तो आजादी के बाद से ही इसे राष्ट्र भाषा का हमेशा से प्रबल दावेदार माना जाता रहा है। लेकिन दक्षिणी क्षेत्रों के अलावा पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों में न तो हिंदी बोली जाती है और न ही हिंदी समझी जाती है। असल में हिंदी उत्तर भारत की जनभाषा थी, जो कि हिंदी और उर्दू का मिश्रित रूप था। इसी कारण से दक्षिण भारत के लोग इसे समझते नहीं थे।  इस तरह से इन क्षेत्रों से हिंदी विरोधी स्वर उठने लगे। जिसके चलते भारत की संवैधानिक भाषा में हिंदी के बजाए अंग्रेजी को तवज्जो दी जाने लगी।

हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। और इस दिन कई तरह के वादे और घोषणाएं की जाती हैं। लेकिन इन वादों को पूरा न होता देख हम हिंदी बोलने, पढ़ने, लिखने वालों को अधिक कष्ट होता है। हिंदी भाषा के कई ऐसे साहित्यकार हुए जिन्होंने हिंदी दिवस के मौके पर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का आगाह करते रहे हैं। तो आइये आज हिंदी दिवस के विशेष मौके पर जानते हैं कि हिंदी को लेकर चुनिंदा साहित्यकारों ने किस तरह से अपनी राय रखी और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए पुरजोर कोशिश की।

  • राजेंद्र यादव- हंस जैसे प्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक रहे, राजेंद्र यादव ने कहा था कि हिंदी हमारी मातृभाषा रही है, लेकिन दुर्भाग्य से इसे सरकारी संरक्षण प्राप्त नहीं है। जबकि सत्ता ने हमेशा से अंग्रेजी को संरक्षण प्रदान किया है। इससे पहले अरबी, फारसी, उर्दू आदि को यह संरक्षण प्राप्त था। उन्होंने कहा है कि ऐसे में हमें ये बात माननी पड़ेगी कि हिंदी हमें जोड़ तो सकती है। लेकिन प्रतिष्ठा या मान-सम्मान नहीं दिला सकता। जो कि हमारे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हैसियत पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि हिंदी को सरकारी स्तर पर प्राथमिकता देनी होगी। विदेशी राजाध्यक्षों और प्रतिनिधियों की तरह हमारे नेताओं को भी विदेशों में  हिंदी बोलकर हमारा मान सम्मान बढ़ाना होगा।

  • केदारनाथ सिंह- हिंदी साहित्य की दुनिया में केदारनाथ सिंह का बड़ा नाम है। उन्होंने कहा कि हिंदी दिवस के नाम पर हमारे देश में थोड़ी सी बदअमली भी की जाती है। भारत, सांस्कृतिक से लेकर भाषायी स्तर पर विविधताओं से भरा हुआ देश है। यहाँ हिंदी से इतर भी कई भाषाएं बोली जाती हैं। इसके लिए उन्होंने कहा कि हमें इस बात का सर्वथा ध्यान रखना चाहिए कि गैर हिंदी भाषी तबकों में हिंदी दिवस का गलत संकेत न जाए। और उन्हें ऐसा न लगे कि वे उपेक्षित हैं। उन्होंने दुख जताते हुए कहा है कि लेकिन सरकार इस बात को लेकर सचेत नहीं रहती। अगर अंग्रेजी के वर्चस्व तोड़ना है तो यह काम अकेले हिंदी नहीं कर सकती। उसे दूसरी भारतीय भाषाओ का सहयोग लेना ही पड़ेगा।
  • विष्णु प्रभाकर- विष्णु प्रभाकर ने स्पष्ट लब्जों में कहा है कि हिंदी भारत की आत्मा है। देश विदेश की कोई भी भाषा इस पर अपना राज नहीं कर सकती। भले ही कुछ वक्त लगे लेकिन हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा होगी। हिंदी के भविष्य को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।

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