अध्यात्म

आखिर भोलेनाथ के पास कैसे आया डमरु, सांप, चंद्रमा और त्रिशूल, जानिए इसके बारे में

भोलेनाथ सभी देवताओं में सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता माने जाते हैं, भोलेनाथ के भक्त इनकी भक्ति में इतने लीन हो जाते हैं कि भक्तों को दुनियादारी से कोई भी मतलब नहीं रहता है, इनके भक्त पूरी तरह से भोलेनाथ की भक्ति में समर्पित हो जाते हैं, ऐसा कहा जाता है कि भोलेनाथ जिस भक्त से प्रसन्न हो जाते हैं उस भक्त के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि हमेशा बनाए रखते हैं, अगर भोलेनाथ का ध्यान किया जाए तो उनकी एक ऐसी छवि उभरकर सामने आती है जिसमें वह वैराग है, इस छवि के हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में डमरू, गले में सांप और सिर पर चंद्रमा धारण किए हुए हैं, आप चाहे भगवान भोलेनाथ के किसी भी मंदिर में चले जाएं, वहां पर उनकी प्रतिमा में यह 4 चीजें आपको देखने को अवश्य मिल जाएंगी, अब सवाल यह उठता है कि आखिर भगवान भोलेनाथ जी के पास डमरु, सांप, चंद्रमा और त्रिशूल यह चीजें कहां से आई? इन सवालों का कोई ना कोई जवाब तो अवश्य ही होगा?

आपको बता दें कि अलग-अलग घटनाओं के साथ भगवान भोलेनाथ के साथ यह सब चीज़ें जुड़ती गई है, भगवान भोलेनाथ से जुड़ी हुई ऐसी बहुत सी बातें हैं जो बहुत ही रहस्यमई लगती है, आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से आखिर भोलेनाथ जी के पास यह 4 चीजें कैसे प्रकट हुई? इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं।

आखिर भोलेनाथ के पास कैसे आया डमरु, सांप, चंद्रमा और त्रिशूल

भोलेनाथ के पास डमरु कैसे आया?

भोलेनाथ के हाथों में डमरु आने की कथा भी बहुत ही रोचक है, जब इस संसार की शुरुआत हुई थी तब विद्या की देवी माता सरस्वती प्रकट हुई थी, तब उन्होंने अपनी वीणा के स्वर से ध्वनि को जन्म दिया था, यह ध्वनि बिना स्वर और संगीत के विहीन था, तब उस समय के दौरान भगवान भोलेनाथ ने नृत्य करते हुए 14 बार डमरू बजाया था, जिसकी ध्वनि से व्याकरण और संगीत के छंद और ताल का जन्म हुआ था, इस संसार के संतुलन के लिए भगवान भोलेनाथ अपने साथ डमरू को स्वयं लेकर प्रकट हुए थे।

भोलेनाथ के पास सांप कैसे आया?

अगर आप लोग भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या कोई प्रतिमा देखते हैं तो उस प्रतिमा या तस्वीर में आप उनके गले में हमेशा नाग देखते होंगे, इस नाग का नाम वासुकी है, पुराणों के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि यह नागों के राजा है और नागलोक पर इन्हीं का शासन है, जब सागर मंथन हो रहा था तब इन्हीं को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया था, ऐसा बताया जाता है कि वासुकी नाग भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ जी ने इन्हें नागलोक का राजा बनाया था, इसके साथ ही भोलेनाथ ने अपने गले में इनको आभूषण के रूप में रहने का भी वरदान दिया था।

भोलेनाथ के पास चंद्रमा कैसे आया?

भगवान भोलेनाथ के सिर पर चंद्रमा कैसे आया इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है, शिव पुराण के अनुसार चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ हुआ था, इन्हीं कन्याओं को नक्षत्र माना गया है, इन सभी कन्याओं में से चंद्रमा सबसे ज्यादा स्नेह रोहिणी से करते थे, इसी वजह से नाराज होकर सभी कन्याओं ने दक्ष से बोला तब दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया था, इस श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान भोलेनाथ की तपस्या की थी, भगवान भोलेनाथ चंद्रमा की तपस्या से अति प्रसन्न हुए थे और उन्होंने चंद्रमा के प्राणों की रक्षा की थी, चंद्रमा को उन्होंने अपने शीश पर धारण किया था, मान्यता अनुसार दक्ष के श्राप की वजह से ही चंद्रमा घटता और बढ़ता है।

भोलेनाथ के पास त्रिशूल कैसे आया?

जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं भगवान भोलेनाथ को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इसी वजह से भोलेनाथ को सभी प्रकार के अस्त्र और शस्त्र का हमेशा से ही ज्ञान रहा है, अगर हम पौराणिक कथाओं के अनुसार देखे तो भोलेनाथ त्रिशूल और धनुष का अधिक प्रयोग करते हुए नजर आते हैं, ऐसा माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने अपने धनुष का आविष्कार स्वयं किया था और त्रिशूल के विषय में ऐसी मान्यता है कि जब भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए थे तब वह रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए थे और यही तीनों गुण भगवान भोलेनाथ जी के त्रिशूल बने थे।

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