अध्यात्म

आखिर भगवान शिव जी का जन्म कैसे हुआ और वह कब, कहां प्रकट हुए थे? जानिए इसकी कथा

भगवान शिव जी के भक्तों की आस्था इनके प्रति देखने लायक है भगवान शिव जी के भक्त हमेशा इनकी भक्ति में लीन रहते हैं और भगवान शिव जी भी अपने भक्तों पर कभी भी किसी प्रकार की मुसीबत नहीं आने देते हैं परंतु क्या आपने इसके बारे में जानने की कोशिश की है आखिर भगवान शिव जी का जन्म कैसे हुआ था? और यह कब कहां पर प्रकट हुए थे? दरअसल सभी भक्तों के प्रिय भगवान शिव जी का जन्म हुआ ही नहीं है यह स्वयंभू है परंतु अगर हम पुराणों के अनुसार देखे तो इनकी उत्पत्ति का विवरण मिलता है विष्णु पुराण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से उत्पन्न हुए थे जबकि भगवान शिव जी विष्णु जी के माथे के तेज से उत्पन्न हुए थे विष्णु पुराण के मुताबिक विष्णु जी के माथे के तेज से उत्पन्न होने की वजह से भगवान शिव जी हमेशा योग मुद्रा में नजर आते हैं।

अगर हम श्रीमद् भागवत के अनुसार देखे तो एक बार जब भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी अहंकार में डूब कर अपने आपको सबसे श्रेष्ठ बताते हुए आपस में लड़ रहे थे तब एक जलते हुए खंभे से भगवान शिव जी प्रकट हुए थे विष्णु पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव जी के जन्म की कहानी शायद भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप वर्णन है इसके अनुसार ऐसा बताया गया है कि ब्रह्मा जी को एक बच्चे की जरूरत थी जिसके लिए उन्होंने तपस्या भी की थी तब अचानक से ही उनकी गोद में एक रोता हुआ बालक जो शिवजी थे वह प्रकट हुए थे जब ब्रह्मा जी ने उस बच्चे के रोने की वजह पूछी तो उस बालक ने बड़ी ही मासूमियत के साथ उनको जवाब दिया था कि उनका कोई भी नाम नहीं है जिसकी वजह से वह रो रहा है।

जब बालक ने ब्रह्मा जी को अपने रोने का कारण बताया तब ब्रह्मा जी ने शिव का नाम रूद्र रखा था जिसका मतलब होता है रोने वाला, परंतु शिवजी तभी भी रोते रहे वह चुप नहीं हुए थे इसके बाद ब्रह्मा जी ने उनका दूसरा नाम दिया था परंतु शिव जी को वह नाम भी पसंद नहीं आया था और वह लगातार रोते रहे थे ब्रह्मा जी ने शिवजी को चुप कराने के लिए लगातार 8 नाम दिए थे जो इस प्रकार है- रुद्र, सर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव तब से भगवान शिव जी इस नाम से जाने जाने लगे थे है शिव पुराण के अनुसार यह सभी नाम पृथ्वी पर लिख दिए गए थे।

विष्णु पुराण में भी शिव के इस प्रकार ब्रह्मा पुत्र के रूप में जन्म लेने के पीछे पौराणिक कथा प्रचलित है इसके मुताबिक जब पृथ्वी आकाश समेत पूरा ब्रह्मांड जलमग्न हो गया था तब ब्रह्मा विष्णु और महेश के अलावा कोई भी देव या प्राणी नहीं बचा था तब सिर्फ भगवान विष्णु ही जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेते हुए दिखाई दिए थे तब उनकी नाभि से कमल नाल पर ब्रह्मा जी प्रकट प्रकट हुए थे जब ब्रह्मा विष्णु सृष्टि के संबंध में वार्तालाप कर रहे थे तब शिव जी प्रकट हुए तब ब्रह्मा जी ने उनको पहचानने से साफ मना कर दिया था जब ब्रह्मा जी ने शिवजी को पहचानने से मना कर दिया तब शिव जी नाराज हो गए थे तब भगवान विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी और इनको शिव जी के बारे में सभी बातों को याद दिलाया था तब ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और शिव जी से क्षमा मांगते हुए उनको अपने पुत्र के रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा था।

ब्रह्मा जी की प्रार्थना को शिव जी ने स्वीकार किया और उनको यह आशीर्वाद दिया था, बाद में जब भगवान ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना शुरू करनी थी तब उनको एक बच्चे की जरूरत आन पड़ी थी तब उनको भगवान शिव जी का आशीर्वाद याद आया था तब ब्रह्माजी ने तपस्या की और शिवजी बच्चे के रूप में ब्रह्मा जी के गोद में प्रकट हो गए थे।

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