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ख़ुलासा: इस वजह से कभी नहीं सड़ता गंगा नदी का पानी, वजह जानकर हो जाएँगे हैरान

पानी हर इंसान के लिए ज़रूरी है। केवल इंसान के लिए ही नहीं बल्कि पेड़-पौधों के साथ-साथ अन्य जीवों के लिए भी बहुत ज़रूरी है। बिना पानी के इस पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पानी इंसान की ज़िंदगी में एक अहम भूमिका निभाता है। बिना पानी के इंसान ज़्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी कहा जाता है कि इंसान को ज़्यादा से ज़्यादा पानी का सेवन करना चाहिए। इंसान का शरीर भी ज़्यादातर पानी से बना हुआ है।

पानी शरीर के लिए बहुत ज़रूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि किसी भी तरह के पानी का सेवन कर लिया जाए। हमेशा स्वच्छ पानी का सेवन करना बेहतर होता है। ज़्यादा समय तक रखे हुए पानी का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि ज़्यादा दिनों तक पानी रखने से उसमें कीड़े पद जाते हैं। इसी वजह से कहा जाता है कि समय-समय पर पर बदलते रहना चाहिए। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे पानी के बारे में बताने जा रहे है, जो कभी ख़राब नहीं होता है। कहा जाता है कि इस पानी में कभी कीड़े नहीं लगते हैं।

जी हाँ हम बात कर रहे हैं गंगाजल की। गंगाजल को आप कितने भी दिन तक रख लीजिए, इसमें कीड़े नहीं पड़ते हैं। ऐसा क्यों होता है, इसके बारे में शायद ही किसी को कुछ पता हो। गंगा को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र नदी का दर्जा दिया गया है और इसे माँ भी कहा जाता है। गंगा नदी की वजह से भारत के एक बड़े हिस्से में जीवन सम्भव है। गंगा में शहरों के कचरे से लेकर मृत शरीर तक बहते रहते हैं, इसके बाद भी इसका जल पवित्र रहता है। सालों बाद भी इसका पानी वैसा का वैसा ही रहता है जबकि साधारण जल कुछ ही दिनों में ख़राब हो जाता है।

क्या आपने इसपर कभी विचार किया है कि आख़िर क्यों गंगाजल सदियों तक पवित्र ही रहता है। आख़िर इसके पीछे की वजह क्या है। आज हम इसके पीछे धार्मिक दृष्टिकोण की बात नहीं बल्कि वैज्ञानिक बात करेंगे। कुछ समय पहले वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध से इस बात का ख़ुलासा हुआ था। वैज्ञानिकों के अनुसार गंगाजल को कभी ख़राब ना होने के पीछे एक वायरस का हाथ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगाजल में एक अद्भुत वायरस पाया जाता है जो गंगाजल को कभी नहीं ख़राब होने देता है। आप चाहे तो गंगाजल को सदियों तक रख लें, लेकिन इसके पानी में थोड़ा भी परिवर्तन नहीं होगा।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस शोध की शुरुआत 1890 में अर्नेस्ट हैंकिन ने की थी जो एक ब्रिटिश वैज्ञानिक थे। उस समय भारत के लोगों को हैज़ा की बीमारी तेज़ी से हो रही थी। जिन लोगों की मौत हो जाती थी, उन्हें गंगा नदी में फेंक दिया जाता था। हैंकिन को इस बात की चिंता सता रही थी की कहीं गंगा नदी में स्नान करने से लोगों को हैज़ा ना हो जाए। इसी वजह से हैंकिन ने जब गंगाजल पर शोध किया तो नतीजे देखकर वह हैरान हो गए थे। क्योंकि शोध के दौरान लाशों को फेंके जाने के बाद भी गंगाजल एकदम साफ़ था। हैंकिन के उस शोध को एक फ़्रेंच वैज्ञानिक ने आगे बढ़ाया। उन्होंने पाया कि गंगाजल में पाया जाने वाला वायरस हानिकारक बैक्टीरिया को ख़त्म करके इसे शुद्ध बना देता है। इस वायरस को वैज्ञानिकों ने निंजा वायरस का नाम दिया है।

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