अध्यात्म

कौन थे सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहने वाले देवरहा बाबा? जिनको भगवान की तरह पूजती थीं इंदिरा गांधी

पहले के लोग जप-तप करते थे और भगवान को प्रसन्न करके अपने लिए अमर होने का वरदान मांग लेते थे, मगर आज के लोग इन बातों पर बिल्कुल यकीन नहीं करते. उन साधुओं की बात को भारत में बहुत से बड़े लोग सच मानते थे. उन्हीं बाबाओं में एक थे देवरहा बाबा जिनकी उम्र, तप और सिद्धियों के बारे में कभी कोई दावा नहीं किया. सहज, सरल और सादा जीवन जीने वाले बाबा देवरहा, लोगों की बातें बिना कुछ पूछे ही जान लेते थे. यह उनकी साधना की शक्ति ही तो थी. ऋषि-मुनियों के भारत में ऐसे ही कई संत हुआ करते थे. जिन्हें दिव्य संत कहा जाता है, उन्हीं में एक संत थे देवरहा बाबा, जिन्हें बहुत ज्ञान था और उनसे मिलने आने वालों में देश-दुनिया के बड़े-बड़े लोगों के नाम शामिल हैं. इनकी प्रशंसकों में देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी थीं, इसका मतलब वे बहुत ही पहुंचे हुए विद्वान रहे होंगे क्योंकि इंदिरा गांधी कोई छोटा-मोटा नाम नहीं है. मगर कौन थे सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहने वाले देवरहा बाबा, क्या थी इनकी उपलब्धियां और अब वे कहां हैं, चलिए जानते हैं इस बारे में.

ये बात है साल 1987 की, जब वृंदावन में यमुना किनारे मचान पर बैठे देवरहा बाबा लोगों से बातचीत कर रहे थे. उधर अफरातफरी मचने लगी. खबर ये थी कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था. आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए. इस बात का पता लगते ही बाबा ने बड़े ऑफिसर को बुलाकर पूछा कि पेड़ क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, ‘प्रधानमंत्री आ रहे हैं, इसलिए जरूरी है.’ तो बाबा बोले, ‘तुम यहां प्रधानमंत्री को लाओगे, प्रशंसा पाओगे, प्रधानमंत्री का नाम भी होगा, लेकिन दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा. फिर उन्होंने आदेश दिया कि पेड़ नहीं काटा जाएगा. अफसरों ने अपनी मजबूरी बाबा को बताई लेकिन बाबा राजी नहीं हुए. उनका कहना था कि ‘ये पेड़ होगा तुम्हारी नजर में, लेकिन मेरा तो साथी है इसलिए ये नहीं कट सकता.

बाबा ने तसल्ली दी कि घबराओ मत, प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल जाएगा. दो घंटे बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है. बाबा की शरण में आने वाले लोग सोचते कि बाबा ने इतना सब कैसे जान लिया. ध्यान, प्राणायाम, समाधि के क्षेत्र में तो वे सिद्धी प्राप्त थे ही, साथ में धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती से वे संवाद भी किया करते थे. देवरहा बाबा का जन्म कब और कहां हुआ इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता लेकिन उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले के रहने वाले होने के कारण उनका नाम देवरहा पड़ गया था.उनके शिष्यों का मानना है कि ये बाबा करीब 250 से 500 वर्षों तक जीवित रहे. मंगलवार, संवत 2047 की योगिनी एकादशी तदनुसार, 19 जून साल 1990 के दिन उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया और समाधि ले ली थी. देवरहा बाबा की चमत्कारी शक्तियों को लेकर तरह-तरह की बातें कही-सुनी जाती हैं.

ऐसा कहा जाता है कि बाबा जल पर भी चलते थे, उन्हें प्लविनी सिद्धि प्राप्त थी. किसी भी गंतव्य पर पहुंचने के लिए उन्होंने कभी किसी सवारी कगा सहारा नहीं लिया. बाबा हर साल माघ मेले के समय प्रयाग आते और यमुना किनारे वृंदावन में आधे घंटे तक पानी में बिना सांस लिए रहते थे. देवरहा बाबा ने अपनी उम्र, तप और सिद्धियों के बारे में कभी दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की ऐसी भी भीड़ रही, जो उनमें चमत्कार तलाशती थी. जिस समय देश में आपातकाल के बाद चुनाव हुए, और इंदिरा गांधी हार गईं वे देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने आई थीं. बाबा ने उन्हें हाथ उठाकर पंजे से आशीर्वाद दिया और इंदिरा वहां से लौट गईं. लौटने के बाद इंदिरा जी ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा ही तय किया और इसी चिह्न पर साल 1980 में इंदिरा जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने बहुमत हासिल की और वे प्रधानमंत्री बन गईं. बाबा मचान पर बैठे-बैठे ही श्रद्धालुओं को धन्य करते थे. कई लोगों का दावा था कि उनके होंठों तक आने से पहले ही बाबा उनके मन की बात समझ जाते थे. साल 1911 में जॉर्ज पंचम भारत आए, तब वे देवरिया जिले के मइल गांव में बाबा के आश्रम पहुंचे. उन्होंने बाबा के साथ क्या बात की, ये उनके शिष्यों ने कभी भी किसी को नहीं बताई. चार खंभों पर टिका मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से लोग उनके दर्शन करते थे.

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