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ये हैं वो मन्दिर जहाँ से कोई भक्त खाली हाथ आज तक नहीं लौटा! 2000 साल पुराना मन्दिर हैं ये !

पूरे देश में बहुत से देवी,देवताओं के मन्दिर हैं ! और सभी मंदिरों की अपनी अलग-अलग मान्यताएं और कहानियां  है,भक्त माता के दर अपनी मनोकामनाएँ ले कर आते हैं क्योंकि उनको विश्वास होता हैं की माँ उनके सारे दुःख दूर कर देगी !  ऐसा ही एक मन्दिर हैं जो 2000 साल से भी पुराना हैं ! इस मन्दिर की भी एक अलग ही मान्यता हैं कहा जाता हैं की जो भी इस मन्दिर में अपनी मनोकामना लें कर आता वो मनोकामना उसकी पूरी हो जाती हैं !

मन्दिर का स्थान 

यह मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से  75 किलोमीटर दूर राजनांदगांव जिले में बना हुआ हैं ,यह मंदिर माँ बम्लेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता हैं, इस मन्दिर की ख़ास बात ये भी हैं की ये सबसे ऊँची पहाड़ी डोंगरगढ़ पर बना हुआ हैं ! और ये मन्दिर चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ हैं !

इस मन्दिर के दर्शन करने इतने आसान नहीं हैं ,इस मंदिर के दर्शन करने के लिए हजार से भी अधिक  सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है, इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में आता है, वो यहां से खाली हाथ वापस नहीं लौटता है, इस मंदिर की  पहाड़ी पर माँ बम्लेश्वरी देवी के दो मंदिर हैं, एक मंदिर पहाड़ी के ऊपर है और दूसरा पहाड़ी के नीचें, माँ के दरबार में आने वाले भक्तों की हर मनोकामना माँ बम्लेश्वरी जरुर पूरी करती हैं !

माँ बम्लेश्वरी देवी मन्दिर से जुड़ी कुछ मान्यताएं

माना जाता हैं की उस वक्त उज्जैन के राजा विक्रमादित्य थे और एक समय विक्रमादित्य को मां बदलामुखी ने सपने में दर्शन दिया थे ! उसके बाद  राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर कामाख्या नगरी के राजा कामसेन ने इस मंदिर को स्थापित किया था !

दूसरी मान्यता  यह हैं की जब राजा कामसेन और विक्रमादित्य के बीच युद्ध हो रहा था तब विक्रमादित्य के पुकारने पर  उनके कुल देवता उज्जैन के महाकाल कामसेन की सेना को नष्ट करने लगे ! अपनी सेना को नष्ट होते देखकर कामसेन ने  भी अपनी कुलदेवी मां बम्लेश्वरी को पुकारा तभी माँ भी युद्ध के मैदान में आ गई !

जैसे ही महाकाल ने युद्ध के मैदान में माँ बम्लेश्वरी देवी को देखा तभी महाकाल ने माता को प्रणाम किया ! जिसके बाद दोनों देशों के बीच समझौता हुआ और तभी से  माता बम्लेश्वरी पहाड़ी पर विराजमान हो गईं ! और उनका मन्दिर बन गया !

माना तो ये भी जाता हैं की जब कामाख्या नगरी पूरी तरह से नष्ट हो गई थी ,तब मां की मूर्ति उस  पहाड़ी पर स्वयं ही  प्रकट हो गई थी ,उस मूर्ति के स्वयं प्रकट होने के बाद ही उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण हुआ था !

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