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इस खतरनाक बीमारी की शादी से पहले करा लेनी चाहिए जांच, वर्ना झेलने पड़ सकते हैं बुरे परिणाम

कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिसकी जांच हमेशा समय रहते करा लेनी चाहिए. अगर समय पर इन बीमारियों की जांच नहीं कराई गयी तो ये आगे जाकर घातक रूप ले सकते हैं. यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा थैलेसीमिया जैसी खतरनाक बीमारी की चपेट में ना आये तो कुंडली के साथ इसकी भी डॉक्टरी जांच करवा लेनी चाहिए. दरअसल, थैलेसीमिया एक प्रकार का अनुवांशिक रक्त से संबंधित रोग होता है और यदि कोई बच्चा इसके साथ जन्म ले लेता है तो उसे जन्म से लेकर उम्र भर रक्त चढ़ाना पड़ता है. इस बीमारी के बारे में लोग अधिक से अधिक जागरूक हो सके इसलिए हर साल 8 मई को थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है.

पिछले साल जून के महीने में मेडिकल कॉलेज में थैलेसीमिया वार्ड की शुरुआत की गयी थी. इसमें थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों का मुफ्त में इलाज किया जाता है. यही इलाज यदि बाहर कराया जाए तो इसका खर्च एक साल का करीब एक लाख रुपये तक आ सकता है. यह खर्च हम केवल एक बच्चे का एक साल में बता रहे हैं. इन दिनों मेडिकल में करीब 46 मरीजों का इलाज चल रहा है.

यह रोग किसी को हो जाने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी होने लगती है, जिस वजह से रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं. जब शिशु की आयु छह महीने की हो जायेगी तभी इसकी पहचान की जा सकती है. यह बीमारी होने पर रोगी बच्चे के शरीर में खून की कमी होने लगती है जिस वजह से उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है.

यहां हर शहर से मरीज अपना इलाज करवाने आते हैं. सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, हापुड़ और चंडीगढ़ से भी मरीज अपना इलाज करवाने आते हैं.

मिलती हैं ये सुविधाएं

  • यहां पर मरीज को नि:शुल्क रक्त उपलब्ध कराया जाता है.
  • गर्भवती महिला का गर्भावस्था के दौरान शिशु में थैलेसीमिया की जांच करने की सुविधा.
  • खून में आयरन की मात्रा को नियंत्रित करवाना.

लक्षण

  • थैलेसीमिया होने पर बच्चे की त्वचा और नाखून का पीला पड़ना.
  • बच्चे की आंख और जीभ का पीला पड़ना.
  • उपरी जबड़े में दोष आना.
  • आंतों में विषमताओं का आना.
  • दांत निकलने में कठिनाई होना.
  • बच्चे का विकास एकदम से रुक जाना.

इस तरह करें बचाव

  • रक्त परीक्षण करवाकर इस रोग की पहचान की जा सकती है.
  • शादी से पहले लड़का और लड़की को रक्त का परीक्षण जरूर करवा लेना चाहिए.
  • गर्भधारण के चार महीने के भीतर बच्चे का परीक्षण करवाना न भूलें.

वैसे तो शरीर में रेड ब्लड सेल्स की उम्र लगभग 120 दिनों की ही होती है. लेकिन थैलेसीमिया हो जाने पर इसकी उम्र घटकर महज 20 दिन रह जाती है, जिसका सीधा असर हीमोग्लोबिन पर पड़ता है. हीमोग्लोबिन की मात्रा शरीर में कम हो जाने पर शरीर दुर्बल होने लगता है और अक्सर किसी न किसी बीमारी से घिरा रहता है. इसके मरीज को हर 15-30 दिनों में अपना खून बदलवा कर नया खून लेना पड़ता है.

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