अध्यात्म

आखिर क्यों और कैसे हुआ था देवी दुर्गा का जन्म? कैसे मिली इनको शक्तियां, जानिए

नवरात्रि के शुभ दिन चल रहे हैं और इन दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, सभी भक्त माता रानी को प्रसन्न करने की अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, इन दिनों में माता रानी की विधि विधान पूर्वक पूजा करके सभी भक्त इनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, माता रानी के नवरात्रों के 9 दिनों तक भक्त पूजा आराधना में लीन रहकर माता के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं, परंतु क्या आप लोग जानते हैं कि आखिर देवी दुर्गा की उत्पत्ति किन परिस्थितियों में हुई थी? आखिर इनका जन्म क्यों हुआ था? आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से माता दुर्गा के जन्म की कहानी के बारे में जानकारी देने वाले हैं।

आखिर क्यों हुआ था मां दुर्गा का जन्म? जानिए पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा जिक्र किया गया है कि देवी दुर्गा का जन्म असुरों के नाश के लिए हुआ था, दैत्यराज देवताओं को काफी परेशान किया करता था, उसको यह वरदान मिला था कि उसका अंत किसी कुंवारी कन्या के हाथों से ही होगा, जब दैत्यराज के अत्याचार से देवी देवता काफी परेशान हो गए तो इसके अत्याचार से बचने के लिए सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, तब ब्रह्मा जी ने देवताओं की समस्या को सुनी, तब ब्रह्मा जी ने उनको बताया कि दैत्यराज का अंत किसी कुंवारी कन्या के हाथों से ही संभव हो सकता है, तब सभी देवताओं ने मिलकर अपने तेज से देवी के विभिन्न अंगों का निर्माण किया था, भगवान शंकर जी के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ था, यमराज के तेज से मस्तक के केस, भगवान विष्णु जी के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, पृथ्वी के तेज से नितंब, वरुण के तेज से जंघा, ब्रह्मा जी के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पैरों की उंगलियां, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान और अन्य देवी-देवताओं के तेज से अलग-अलग अंग का निर्माण हुआ था।

मां दुर्गा को देवी-देवताओं ने कौन-कौन से अस्त्र प्रदान किए

जब मां दुर्गा की उत्पत्ति हुई तब भगवान शिव जी ने महाशक्ति को अपना त्रिशूल प्रदान किया था, धन की देवी माता लक्ष्मी जी ने कमल का फूल दिया था, भगवान विष्णु जी ने चक्र दिया था, अग्नि ने शक्ति और बाणों से भरे तरकश दिए थे, वरुण देव ने दिव्य शंख दिया था, हनुमान जी ने गदा दिया था, शेषनाग जी ने मणियों से सुशोभित नाग दिया था, इंद्र जी ने वज्र दिया था, भगवान राम जी ने धनुष दिया था, वरुण देव ने पास और तीर दिए थे, ब्रह्मा जी ने चारों वेद और हिमालय पर्वत ने मां दुर्गा को सिंह की सवारी दी थी, समुद्र ने देवी दुर्गा को उज्जवल हार, कभी ना फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, पैरों के नूपुर, हाथों के कंगन और उंगलियां दी थी, इन सभी चीजों को देवी माता ने अपनी 18 भुजाओं में धारण किया था, देवी माता ने सभी शक्तियां प्राप्त करके दैत्यराज का अंत किया और देवी-देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी।

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