अध्यात्म

भोलेनाथ का चमत्कारिक मंदिर जहां पर मौजूद घी का शिवलिंग भक्तों की हर मनोकामनाएं करता है पूरी

हमारे हिंदुस्तान में महादेव के ऐसे बहुत से मंदिर मौजूद है जिन मंदिरों के प्रति लोगों की आस्था जुड़ी हुई है, इन मंदिरों में लोग भोलेनाथ के दर्शन के लिए भारी संख्या में पहुंचते हैं, भोलेनाथ के इन प्रसिद्ध मंदिरों की अपनी खास विशेषता और मान्यता है जिनकी वजह से यह मंदिर दुनिया भर में सबसे अलग माने जाते हैं, इन्हीं मंदिरों में से एक भगवान शिव जी का एक ऐसा मंदिर मौजूद है जो अपने चमत्कार के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है, शिव जी का यह मंदिर केरल के त्रिशूर जिले में स्थित है, त्रिशूर जिले में स्थित भगवान शिव जी का यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना बताया जाता है, इस मंदिर को वडकुनाथन मंदिर के नाम से लोग जानते हैं, यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है, इस मंदिर के अंदर शिवलिंग नहीं दिखाई देता है, ऐसा बताया जाता है कि भगवान शिव जी का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पर शिवलिंग नजर नहीं आता है, यहां पर सिर्फ घी का टीला दिखाई देता है और इस शिवलिंग का रोजाना नियमित रूप से अभिषेक होता है।

वैसे तो शिव जी के इस मंदिर में भक्तों का वर्ष भर तांता लगा रहता है परंतु जब सावन का महीना आता है तो इस मंदिर के अंदर अन्य दिनों से भक्तों की भारी भीड़ दिखाई देती है, भगवान शिव जी के इस मंदिर में सभी भक्त अपनी अपनी इच्छाएं लेकर आते हैं, अगर हम धार्मिक परंपरा के अनुसार देखें तो ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर के अंदर शिवलिंग का घी से अभिषेक होता है, यह शिवलिंग घी की एक मोटी परत से हमेशा ढका रहता है, जिसकी वजह से यह शिवलिंग किसी को भी दिखाई नहीं देता है मान्यता अनुसार यह शिवलिंग बर्फ से ढके कैलाश पर्वत का प्रतिनिधित्व करता है, ऐसा बताया जाता है कि इस शिवलिंग पर जो घी चढ़ाया जाता है उसकी कोई भी गंध नहीं होती है और ना ही गर्मी के मौसम में यह भी पिघलता है, यह शिवलिंग पर ही जमा रहता है।

अगर आप भगवान शिव जी के वडकुनाथन मंदिर के दर्शन के लिए जाएंगे तो यह मंदिर वास्तु कला के लिए प्रसिद्ध है, ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी, यह मंदिर विशाल पत्थरों की दीवारों से घिरा हुआ है, इस मंदिर में जो भी भक्त दर्शन के लिए जाता है उसको मन की शांति प्राप्त होती है, इस मंदिर में हर वर्ष आनापुरम महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिस महोत्सव के अंदर हाथियों को खाना खिलाने की परंपरा है, इस महोत्सव की शुरुआत सबसे छोटे हाथी को भोजन देकर किया जाता है।

शिव जी का यह प्राचीन मंदिर अपनी पुरानी परंपराओं और वास्तु शास्त्र की संरक्षण तकनीकों के ज्ञान को अपने आप में समेटे हुआ है, यहां के स्थानीय लोगों का ऐसा बताना है कि यहां पर शंकराचार्य के माता-पिता ने संतान प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किया था, इस मंदिर परिसर के अंदर चार गोपुरम चार मुख्य दिशाओं में स्थित है, दक्षिण और उत्तर दिशा के गोपुरम प्रतिबंधित हैं और पूर्व और पश्चिम दिशा वाले गोपुरम से मंदिर में प्रवेश किया जाता है।

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