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बाबा बर्फ़ानी के रास्ते में पड़ने वाली शेषनाग झील के धार्मिक महत्व को जानकर आप भी जाना चाहेंगे

हिंदू धर्म कई मान्यताओं और परम्पराओं के ऊपर टिका हुआ है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग इन्ही मान्यताओं और परम्पराओं के आधार पर अपना जीवन जीते हैं। जीवों पर दया करना और किसी से छल-कपट ना करना ये हिंदू धर्म के मूल तत्व हैं। हर समय ईश्वर का ध्यान करते हुए हिंदू धर्म को मानने वाले लोग अपने किसी काम की शुरुआत करते हैं। हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। भगवान शिव भी इन्ही देवताओं में से एक हैं, जिनकी पूजा सबसे ज़्यादा की जाती है।

सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर जाते हैं यात्रा को:

भगवान शिव के कई रूप हैं। शिव भक्त इनके दर्शन के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने से भी नहीं कतराते हैं। सावन के महीने में शिव भक्त काँवरिया लिए हुए बोल बम का नारा लगाते हुए सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा पूरे जोश के साथ करते हैं। ठीक वैसे ही दुर्गम रास्तों से होते हुए शिव भक्त शिव के स्वरूप बाबा बर्फ़ानी के दर्शन के लिए भी जाते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें 27 जून से इस साल की अमरनाथ यात्रा शुरू हो चुकी है। अमरनाथ यात्रा को सबसे कठिन धार्मिक यात्रा माना जाता है।

गुज़रना पड़ता है कई कठिन पड़ावों से होकर:

अमरनाथ यात्रा का शिव भक्तों में काफ़ी महत्व है। हर शिव भक्त एक बार ज़रूर अमरनाथ यात्रा करने की इच्छा रखता है। अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शिव स्वयं अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। अमरनाथ गुफा में भगवान शिव का बर्फ़ का शिवलिंग अपने आप ही प्रकट होता है। अमरनाथ गुफा तक पहुँचने से पहले यात्रियों को कई पड़ावों से होकर गुज़रना पड़ता है। मान्यता के अनुसार अमरनाथ से पहले एक झील पड़ती है, जिसे शेषनाग झील के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसमें शेषनाग का वास है।

मुश्किलों से ज़रा भी विचलित नहीं होते हैं शिवभक्त:

अमरनाथ यात्रा के लिए निकले भक्त बाबा बर्फ़ानी का उद्घोष करते हुए निकलते हैं। यहाँ पर निलकंठ बाबा शिव अमरेश्वर महादेव का स्थान है। प्राचीनकाल में इसे अमरेश्वर कहा जाता था। अमरनाथ यात्रा के दौरान रास्ते में कई मुश्किलें आती हैं, लेकिन शिवभक्त ज़रा भी विचलित नहीं होते हैं और यात्रा को पूरी करते हैं। रास्ते में पड़ने वाली शेषनाग झील का काफ़ी धार्मिक महत्व है। आपको बता दें यह मनोरम झील पहलगाम से लगभग 32 किलोमीटर और चंदनवाड़ी से 16 किलोमीटर दूर है। सर्दियों के समय में यह झील जाम जाती है, झील सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

24 घंटे में एक बार झील से बाहर आते हैं शेषनाग:

यह झील नीले पानी की ख़ूबसूरत झील है। समुद्र तल से 3658 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस झील को शेषनाग झील के नाम से जाना जाता है। कथाओं के अनुसार भगवान शिव माता पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए अमरनाथ ले जा रहे थे। इस कथा को वह पार्वती जी को अकेले सुनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने असंख्य साँपों को अनंतनाग, नंदी को पहलगाम, चंद्रमा को चंदनवाड़ी में छोड़ दिया। शेषनाग को भगवान शिव के इसी झील में छोड़ दिया। भगवान शिव ने शेषनाग को निर्देश दिया कि इस झील से आगे किसी को नहीं जाने देना। तभी से माना जाता है कि इस झील में शेषनाग का वास है। लोगों का कहना है कि हर 24 घंटे में शेषनाग इस झील से बाहर आकर दर्शन देते हैं।

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