अध्यात्म

पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है वट सावित्री का व्रत, जानें इस व्रत से जुड़ी कथा

वट सावित्री का व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को सावित्री ने रखा था और अपने पति की रक्षा यमराज से की थी। ये व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या में आता है और इस साल ये व्रत 3 जून को आ रहा है। इस व्रत को मनाने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है और ये कथा इस प्रकार है-

एक पौराणिक कथा के अनुसार, अश्वपति नामक एक राजा हुआ करता था और इस राजा की कोई भी संतान नहीं थी। संतान की प्राप्ति के लिए राजा अश्वपति और उनकी पत्नी ने सावित्री देवी का कठीन यज्ञ किया। राजा और उसकी पत्नी से प्रसन्न होकर सावित्री देवी ने इन्हें आशीर्वाद दिया और इस आशीर्वाद से इन्हें एक बेटी हुई। इस बेटी का नाम इन्होंने सावित्री रखा। सावित्री देखने में काफी सुंदर हुआ करती थी।

जब सावित्री बड़ी हुई तो उन्होंने साल्व देश के राजा के पुत्र सत्यवान से शादी करने की इच्छा जाहिर की। वहीं नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान से विवाह न करने की सलाद दी और कहा कि अगर तुम सत्यवान से विवाह करती हो तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। लेकिन सावित्री ने  अपने दिल की सुनी और सत्यवान से विवाह कर लिया। विवाह करने के बाद सावित्री को पता था कि सत्यवान की जल्द ही मृत्यु हो जाएगी। इसलिए सावित्री ने घोर तपस्या की और इस तपस्या के कारण यमराज ने सावित्री के पति के प्राण उसे वापस कर दिए। जिसके बाद से हर महिला द्वारा वट सावित्री का व्रत रखा जाने लगा।

किसी तरह से रखते हैं इस व्रत को

– वट सावित्री का व्रत करवा चौथ की तरह ही होता है। मगर इस व्रत के दौरान चांद की जगह वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती हैं।

– व्रत वाले दिन महिलाएं सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करती हैं और स्नान करने के बाद अच्छे सी श्रृगांर कर व्रत रखने का संकल्प लेती हैं।

– इस व्रत के दौरान महिलाएं किसी भी चीज का सेवन नहीं करती हैं और निर्जला होकर ये व्रत रखती हैं।

–  इस दिन लाल की जगह नारंगी रंग का सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है।

–  इस व्रत के दौरान बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है और इस पेड़ के नीचे  सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखी जाती है। बरगद के पेड़ पर सबसे पहले जल चढ़ाया जाता है और फिर फूल, चावल, सिंदूर और मिठाई पेड़ को अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद पेड़ पर रक्षा सूत्र बांधा जाता है और सात बार पेड़ की परिक्रमा की जाती है।

– परिक्रमा करने के बाद हाथ में काला चना लेकर इस व्रत की कथा सुनी जाती है और कथा पूरी सुनने के बाद औरतें एक दूसरे को  श्रृंगार का सामान देती हैं।

– ये व्रत अगले दिन तोड़ा जाता है और अगले दिन बरगद के पेड़ का कोपल खाकर ही ये व्रत समाप्त किया जाता है। कई महिलाएं इस व्रत के दौरान बरगद का पेड़ भी लगती हैं। इसलिए अगर आप चाहें तो इस दिन बरगद का पेड़ भी लगा सकती हैं।

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