अध्यात्म

3000 साल पहले हुआ था अद्भुत चमत्कार जिसकी वजह से इस जगह पर हमेशा पानी में रहते हैं भगवान शिव

हिंदू कैलेंडर के अनुसार साल में 12 महीने होते हैं। 12 महीनों में से एक महीना सावन भी होता है। सावन को पूरे 12 महीनों में सबसे श्रेष्ठ महीना माना जाता है। इस महीने में बारे में हिंदू धर्मशास्त्रों में भी बताया गया है। सावन के महीने को भगवान शिव को समर्पित किया गया है। इसी वजह से सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान शिव के भक्त इसी महीने में उन्हें दूर-दूर जाल चढ़ाने के लिए भी जाते हैं।

ज्योतिषियों के अनुसार सावन महीने में पड़ने वाले सोमवार बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। सोमवार भगवान शिव का दिन होता है और सावन उनका महीना। ऐसे में सावन में पड़ने वाले सोमवार का महत्व बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार को व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं, उन्हें जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में पूरे एक महीने के लिए भगवान शिव कैलाश से उतरकर पृथ्वी पर आते हैं।

इस वजह से भगवान शिव अपने भक्तों के बहुत क़रीब आ जाते है। जो भी इस महीने में भगवान शिव की पूजा करता है, उसे बहुत जल्दी फल की प्राप्ति हो जाती है। सावन के इस महीने में आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास हज़ारों साल पुराना है। भगवान शिव के मंदिर भारत के हर कोने में स्थित हैं, लेकिन कुछ मंदिर अपनी ख़ासियत की वजह से विदेशों में भी चर्चित हैं। क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव का एक ऐसा भी मंदिर है जो 12 महीने जाल में डूबा रहता है।

3000 साल पहले च्यवन ऋषि ने की थी मंदिर की स्थापना:

मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार इस शिवलिंग की स्थापना च्यवन ऋषि ने की थी। उन्ही के आह्वान पर मा नर्मदा गुप्त रूप से प्रकट हुई थीं और शिवलिंग का पहली बार अभिषेक किया गया था। उसी समय से यहाँ एक वट वृक्ष से जलधारा निकल रही है जिसकी वजह से शिवलिंग हमेशा जलमग्न रहता है। मान्यताओं के अनुसार चंद्रकेश्वर मंदिर की स्थापना आज से लगभग 3000 साल पहले च्यवन ऋषि ने की थी। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ भगवान शिव के दर्शन करने के लिए भक्तों को पानी में उतरना पड़ता है।

नर्मदा कुंड में स्नान करके भक्त करते हैं शिव के दर्शन:

इस मंदिर के बारे में पुजारी बताते हैं कि जब च्यवन ऋषि ने तपस्या करने के लिए इस मंदिर की स्थापना की थी, उस समय नर्मदा नदी यहाँ से 60 किलोमीटर दूर बहती थी। ऋषि को स्नान करने के लिए हर रोज़ लम्बा सफ़र तय करना पड़ता था। ऋषि के लगन को देखकर नर्मदा माँ उनसे ख़ुश हुई और कहा कि में स्वयं आपके मंदिर मिस्टर आ रही हूँ। अगले दिन ही मंदिर में जलधारा फूटी और नर्मदा वहीं पहुँच गयी। जानकारी के अनुसार च्यवन ऋषि के बाद कई ऋषियों ने यहाँ तपस्या की, इनमें सप्तऋषि प्रमुख थे। इस मंदिर में सावन के सोमवार को भक्तों की विशेष भीड़ एकत्र होती है। यहाँ आने वाले भक्त पहले नर्मदा कुंड में स्नान करते हैं, फिर भगवान शिव के दर्शन करते हैं।

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