अध्यात्म

भोलेनाथ का अद्भुत और चमत्कारिक मंदिर, जहां खुद खाने आते हैं खिचड़ी भोलेनाथ

देशभर में भगवान भोलेनाथ के भक्तों की कोई कमी नहीं है भोलेनाथ के भक्त दिन रात इनकी सेवा में लगे रहते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं वैसे देखा जाए तो हमारे देश में ऐसे बहुत से शिव मंदिर है जो अपनी अपनी विशेषता और चमत्कार के लिए दुनिया भर में मशहूर है इन्हीं मंदिरों में से बनारस शहर में भी कई रहस्य छुपे हुए रहस्य हैं काशी शहर को अपनी भक्ति के लिए माना जाता है और यहां पर मौजूद मंदिरों के दर्शन करने के लिए भक्तों की संख्या भी बहुत अधिक होती है आज हम आपको काशी के एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जहां पर शिवलिंग दो भागों में बटा हुआ है और इस मंदिर में भोलेनाथ खुद खिचड़ी खाने के लिए आते हैं।

आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं वह काशी के केदारखंड का गौरी केदारेश्वर मंदिर है आप लोगों ने तो दुनिया भर में बहुत से शिवलिंग देखे होंगे या फिर उनके बारे में सुना होगा परंतु काशी में मौजूद यह शिवलिंग बहुत ही चमत्कारिक है और इसकी एक नहीं बल्कि बहुत सी महिमा है इस शिवलिंग की सबसे खास बात यह है कि यह शिवलिंग दो भागों में बटा हुआ है एक भाग में माता पार्वती के साथ भगवान शिव जी वास करते हैं तो दूसरे भाग में भगवान नारायण अपनी अर्धांगिनी माता लक्ष्मी जी के साथ वास करते हैं इतना ही नहीं बल्कि इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना भी अलग है अन्य मंदिरों से इस मंदिर में पूजा विधि अलग देखने को मिलती है इस मंदिर के अंदर बिना सिला हुआ वस्त्र धारण करके ही ब्राह्मण चार पहर की आरती करते हैं और शिवलिंग पर बेलपत्र दूध गंगाजल के साथ ही खिचड़ी का भोग लगाया जाता है ऐसा माना जाता है कि यहां पर खिचड़ी का भोग ग्रहण करने के लिए खुद भगवान शिव जी आते हैं।

इस मंदिर को लेकर ऐसा बताया जाता है कि जिस स्थान पर गौरी केदारेश्वर का मंदिर स्थित है यह काशी भगवान विष्णु का होता था तब यहां पर मान्धाता ऋषि कुटिया बना कर रहा करते थे ऐसा कहा जाता है कि मान्धाता जाति से बंगाली थे जिसकी वजह से वह चावल का समान ही बनाते थे मान्धाता ऋषि भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे और रोजाना भगवान भोलेनाथ की तपस्या करने के पश्चात ही इसी स्थान पर खिचड़ी बनाकर पत्तल पर निकाल देते थे और उस खिचड़ी के दो भाग कर दिया करते थे शिवपुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि मान्धाता ऋषि अपने हाथों से बनाई गई खिचड़ी के एक हिस्से को लेकर रोजाना पहले गौरी केदारेश्वर को खिलाने के लिए हिमालय जाया करते थे फिर वापसी करने के बाद आधी खिचड़ी के दो भाग करके एक हिस्से अतिथि को देते थे और एक हिस्सा खुद खाया करते थे।

मान्धाता ऋषि ने कई सालों तक सेवा की थी एक बार उनकी तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई थी उन्होंने बहुत प्रयास किया कि वह खिचड़ी बनाकर हिमालय ले जाए परंतु वह इस काम में समर्थ नहीं हो पाए थे जिसकी वजह से वह काफी हताश हो गए और वह अपने प्रभु और माता को खिचड़ी नहीं खिला पाए थे वह काफी दुखी होकर बेहोश हो गए तब हिमालय से गौरी केदारेश्वर इस स्थान पर स्वयं प्रकट हुए और इन्होंने खिचड़ी का भोग लगाया था तब उन्होंने मान्धाता ऋषि को आशीर्वाद दिया था कि आज से मेरा एक स्वरुप काशी में ही वास करेगा।

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