अध्यात्म

मां दुर्गा के इस मंदिर में चढ़ता है मदिरा का भोग, आज तक कोई भक्त नहीं लौटा खाली हाथ

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि हमारा भारत देश धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है हमारे देश में ऐसे बहुत से प्राचीन मंदिर उपस्थित है जो अपने किसी ना किसी विशेषता या रहस्य के लिए दुनिया भर में मशहूर है जिनके रहस्य आज तक किसी को भी नहीं मालूम है यहां तक कि वैज्ञानिक भी इन चमत्कारों के आगे हार मान गए हैं शायद आप लोगों में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्होंने इन मंदिरों के चमत्कारों के बारे में सुना या फिर देखा होगा इन चमत्कारों को देख कर कभी कभार लोगों को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होता है परंतु वास्तव में देखा जाए तो इस तरह के चमत्कार बहुत से मंदिरों में देखने को मिलते हैं आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जहां पर माता दुर्गा के मंदिर में माता अपने भक्तों से प्रसन्न होकर मदिरा का भोग स्वीकार करती है जी हां, आप लोग बिलकुल सही सुन रहे हैं इस मंदिर में मां दुर्गा को मदिरा का भोग लगाया जाता है।

दरअसल, हम जिस मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं यह राजस्थान में माता दुर्गा का प्राचीन मंदिर भवाल माता मंदिर है यहां के स्थानीय लोग भवाल माता को भुवाल अथवा भंवाल भी कहते हैं माता का यह अद्भुत मंदिर नागौर जिले की रियां तहसील में स्थित है इस मंदिर के विषय में ऐसा बताया जाता है कि यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है इस मंदिर को अद्भुत इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर में माता दुर्गा जिस भक्त से प्रसन्न हो जाती है उससे ढाई प्याले मदिरा का भोग स्वीकार करती है इस मंदिर में देवी माता के दो रूप विराजमान है काली और ब्राह्मणी।

माता दुर्गा के इस मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है कि माता रानी के यह दोनों रूप अपने आप प्रकट हुए थे इन दोनों ही रूपों से जुड़े हुए बहुत से चमत्कार है जो भक्त इस मंदिर में आता है वह ब्राह्मणी देवी को मिठाई का भोग अर्पित करता है और काली को मदिरा का भोग लगाता है जो भक्त इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं उनका ऐसा कहना है कि यह माता का चमत्कारिक मंदिर बहुत ही सिद्ध स्थान है इस मंदिर में जो भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर आता है वह कभी भी आज तक निराश होकर नहीं लौटा है माता रानी अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करती है इस मंदिर के बारे में मदिरा का भेंट करने के बारे में भी बताया गया है इसको प्रसाद बोला जाता है जब किसी भक्त का कोई कार्य या मनोकामना पूरी हो जाती है तो उस भक्त के हाथों से माता यह भेंट स्वीकार कर लेती है जब भक्त इस मंदिर में मदिरा लेकर आता है तो पुजारी उससे चांदी का प्याला भरता है इसके पश्चात वह देवी के होठों तक प्याला ले जाता है इस समय के दौरान देवी के मुख की ओर देखना वर्जित माना गया है जिस भक्तों से माता रानी प्रसन्न होती है उसका मदिरा स्वीकार कर लेती है और प्याले में एक बूंद भी मदिरा शेष नहीं रह जाता है।

इस मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है कि यह पहले विरान इलाका हुआ करता था खेजड़ी के एक पेड़ के नीचे देवी माता की यह दोनों प्रतिमाएं प्रकट हुई थी पुरानी कहानियों के अनुसार विक्रम संवत 1050 में डाकुओं का एक दल राजा की सेना से घिर गया था तब उन्होंने देवी का स्मरण किया था देवी की कृपा से राजा की सेना की दृष्टि बदल गई थी तब उन्हें सभी डाकू भेड़ बकरी की तरह नजर आने लगे थे प्राण रक्षा करने पर डाकुओं ने देवी को प्रसाद अर्पित करना चाहा परंतु उनके पास मदिरा के सिवा और भी कुछ अर्पित करने के लिए नहीं था इसलिए उन्होंने माता को मदिरा ही अर्पित कर दिया हैरान कर देने वाली बात यह है कि माता ने पूरा मदिरा का प्याला स्वीकार कर लिया था यह सब देखकर डाकू भी आश्चर्यचकित हो गए थे कुल ढाई प्याले मदिरा का माता ने स्वीकार किया था तब से डाकुओं ने डकैती छोड़ दी थी आज भी यह परंपरा निभाई जा रही है।

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