अध्यात्म

आखिर क्यों शनिदेव अपने पिता सूर्य से रखते हैं बैर, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा

ज्योतिष में शनि और सूर्य को विरोधी ग्रह माना गया है, वहीं धार्मिक मान्यताओं में भी शनि, सूर्यदेव के घोर विरोधी कहे जाते हैं, जबकि आश्चर्य की बात ये है कि इन दोनों पिता-पुत्र का रिश्ता है, दरअसल शनि, सूर्यदेव के ही पुत्र है, ऐसे में अक्सर लोगों के मन ये सवाल आता है कि आखिर शनि, अपने ही पिता सूर्यदेव के शत्रुता का भाव क्यों रखते हैं और वो स्वभाव में इतने क्रूर क्यों हैं। दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा है और आज हम आपको वही कथा बताने जा रहे हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार शनि देव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उनसे ये वरदान प्राप्त किया था कि वे देव-मुनष्य सभी के पापों का हिसाब रखकर उन्हें उसके अनुसार दंड देंगे। कथा के अनुसार इस वरदान को मागने के पीछे शनि देव का विशेष अभिप्राय था, दरअसल उन्हें उनके स्वयं के अपने पिता सूर्यदेव के कर्मों के कारण पीड़ित होना पड़ा था, जिससे वे बहुत आहत हुए और उन्होने प्रण लिया कि उन्हें और उनके जैसे हर दोषी को दंड देंग।

दरअसल अपने पिता सूर्यदेव से शनि इसलिए दुखी थे क्योंकि जब शनि अपनी माता छाया के गर्भ में थे, तभी देवी छाया अपना अधिकांश समय भगवान शिव की उपासना में लगाती थीं। ऐसे में शिव की उपासना में वे इतनी रम गई कि उन्होंने गर्भावस्था में अपनी सेहत तक का उचित ध्यान नहीं दिया जिसका असर उनके गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ा और इसके फलस्वरूप शनि बेहद काले और कमजोर बालक के रूप में जन्में। जबकि उनके पिता सूर्यदेव बहुत ही रूपवान और आकर्षक थे, ऐसे मे जब उन्होंने शनि को देखा तो उनकी काले रंग की वजह से उन्हे संतान के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया। साथ ही सूर्य देव ने अपनी पत्नी छाया पर लांछन लगाते हुए उन्हें त्याग दिया।

ऐसे में जब शनिदेव देव को अपने पिता के इस व्यवहार और माता छाया के अपमान के बारे में पता चला तो वे बहुत आहत हुए और प्रण लिया कि वे अपने पिता को उनके किए गए कर्म के लिए दंडित करेंगे और इसी कामना के साथ वे महादेव की तपस्या में लग गए । उनकी कठोर तपस्या फलित हुई और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हे उनका मनचाहा वरदान दिया और उन्हे देवी-देवताओं समेत मनुष्य और सभी प्राणियों को उनके बुरे कर्मों का दंड देने का अधिकार बना दिया।

ऐसे में जैसे ही ये शक्ति शनिदेव को हासिल हुई उन्होने सबसे पहले अपने पिता को उनके कर्मों के फलस्वरूप दंड दिया। शनि देव ने स्पष्ट किया कि जिस किसी को भी लगता है कि उसे कोई दंड नहीं मिल सकता, उसके बुरे कर्मों का कोई हिसाब-किताब नहीं रखा जा रहा, तो उसे ज्ञात हो कि वो मेरे क्रूर दृष्टि और दंड का भागी बनेगा।

इस तरह शनिदेव के सम्बंध अपने पिता सूर्यदेव से हमेशा शत्रुवत ही रहें, वहीं चूकि उन्हें बुरे कर्मों के लिए दूसरों को दंडित करने का अधिकार प्राप्त है, ऐसे में वे न्याय के देवता कहलाए । यही वजह है कि लोग आज भी शनिदेव से डरते हैं कि क्योंकि वे जरा सी भी भूल पर दंडित करने से नहीं चूकते हैं और लोगों के उनके क्रूर दृष्टि का भागी बनना पड़ता है।

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