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तेनालीराम कहानी: घोड़े की मदद से तेनालीराम ने राजा को करवाया उनकी जिम्मेदारी का एहसास

राजा कृष्णदेव राय को घोड़ों का काफी शौक था और इनके पास कई सारे घोड़े हुआ करते थे। लेकिन इसके बावजूद महाराज कृष्णदेव राय एक अरब प्रदेश के व्यापारी से 40 घोड़ों को खरीद लेते हैं। लेकिन महाराज कृष्णदेव राय के अस्तबल में इन घोड़ों को रखने की जगह नहीं होती है। राजा कृष्णदेव राय सोचते हैं कि वो अपने अस्तबल को और बढ़ करवा लेंगे ताकि इन घोड़ों को रखने के लिए जगह बन जाए। राजा  कृष्णदेव राय अस्तबल को बड़ा करना का आदेश मंत्री को देते हैं और मंत्री से कहते हैं कि जब तक ये अस्तबल बड़ा ना हो जाए आप राज्य की प्रजा को एक-एक घोड़ा दे दें। राजा की बात को मानते हुए मंत्री राज्य के आम नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को एक एक घोड़ा सौंप देता है। मंत्री राज्य की प्रजा से कहता है कि जब आप इन घोड़ों को वापस करेंगे तो राजा स्वयं ये देखेंगे की आप लोगों ने इन घोड़ों की सही से देखभाल की है की नहीं। घोड़ों की अगर सही देखभाल किसी ने नहीं की तो उसे सजा दी जाएगी।

तेनालीराम को भी एक घोड़ा मिल जाता है और तेनालीराम उस घोड़े को अपने घर के पास बनी एक छोटी सी कुटिया में बांध देता है। राज्य का हर नागरिक अपने घोड़े की सेवा में लग जाता है और अपना भोजना भी घोड़े को देना शुरू कर देते हैं। ताकि राजा की और से दिया गया घोड़ा एकदम सेहतमंद रहे और राजा की और से उन्हें कोई दंड ना मिले। लेकिन तेनालीराम रोज थोड़ी ही मात्रा में घोड़े को खाना देता है और उसकी सही से देखभाल भी नहीं करता है।

कुछ महीनों बाद अस्तबल बनकर तैयार हो जाता है और सभी लोग महाराज कृष्णदेव राय के समक्ष घोड़ों को ले आते हैं। लेकिन तेनालीराम अपना घोड़ा नहीं लाता है। राजा कृष्णदेव तेनालीराम से घोड़े को ना लाने का कारण पूछते हैं। तेनालीराम राजा से कहता है, आपका दिया हुआ घोड़ा पागल हो गया है। इसलिए मैं उसको नहीं लाया। जिसके बाद राजा अपने मंत्री को तेनालीराम के घर जाकर घोड़े को लाने का आदेश देते हैं। तेनालीराम मंत्री को उनके घोड़े से सावधान रहने की सलाह देता हैं। लेकिन मंत्री तेनालीराम की सलाह को अनदेखा कर कुटिया में घुस जाता है और भूखा घोड़ा मंत्री को खाने की कोशिश करता है। मंत्री के साथ गए हुए सिपाही किसी तरह से घोड़े को काबू में लाते हैं।

वहीं जब मंत्री राजा के सामने घोड़े को पेश करता है, तो राजा को घोड़ा काफी कमजोर नजर आता है। राजा तेनालीराम से घोड़े के कमजोर होने का कारण पूछता है। तेनालीराम कहता कि मैं घोड़े को प्रति दिन थोड़ा ही खाना दिया करता था। राजा थोड़ा खाना देनी की वजह तेनालीराम  से पूछते हैं।

तब तेनालीराम राजा से कहता है, राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना होता है ना कि उन पर अधिक बोझ डालना। आप ने राज्य की जनता पर घोड़े को पालने की जिम्मेदारी डाल दी। आपकी जनता दिन रात घोड़ों की सेवा में लगी रही और अपना खाना भी इन घोड़ों को देने लगी। जिसकी वजह से आपके घोड़े तो सेहतमंद हो गए लेकिन जनता दुर्बल हो गई। जिस तरह से मेरी जिम्मेदारी इस घोड़े को पालने की थी। उसी तरह से आपकी जिम्मेदारी भी राज्य की जनता को पालने की है।

तेनालीराम की ये बात सुनकर राजा को अपने गलती का एहसास हुआ। राजा ने अपनी प्रजा से माफी मांगी और जिन जिन लोगों ने घोड़े की देखभाल की उनको सोने के सिक्के भेंट के रूप में दिए।

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