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6 करोड़ साल पुराने शालिग्राम से अयोध्या में बनेगी श्रीराम की मूर्ति, जाने कैसे हुई इसकी उत्पत्ति

अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर का कार्य प्रगति पर चल रहा है। हाल ही में यहां नेपाल से शालिग्राम की दो बड़ी शिलाएं लाई गई। 6 करोड़ साल पुरानी इन शिलाओं से भगवान राम के बाल स्वरूप की मूर्तियाँ बनाई जाएगी। इस शालिग्राम की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है। इसी के साथ शालिग्राम को लेकर चर्चा का विषय हर जगह फैल गया है। तो आखिर ये शालिग्राम क्या होती है? इसे हिंदू धर्म में इतना खास क्यों माना जाता है? चलिए जानते हैं।

क्या है शालिग्राम?

शालिग्राम काले रंग का एक पत्थर होता है। माना जाता है कि इसमें भगवान श्रीहरि विष्णु का वास होता है। मानयतों के अनुसार भगवान विष्णु ने कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम का रूप धारण किया था। यह वही तिथि थी जब वृंदा तुलसी के रूप में प्रकट हुई थी। इसलिए तुलसी विवाह के दिन तुलसी व शालिग्राम का विवाह कराया जाता है। माना जाता है कि इससे इंसान को पुण्य की प्राप्ति होती है।

शालिग्राम से जुड़ी रोचक बातें

शालिग्राम एक तरह से भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से एक है। यह शालिग्राम पत्थर सिर्फ नेपाल के गंडकी नदी में मिलता है। विष्णु पुराण का मानना है कि जिस घर में शालिग्राम की पूजा की जाती है उन्हें तीर्थ करने जितना फल मिलता है। इसकी पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। घर की सभी समस्याएं खत्म होती है। भाग्य प्रबल होता है।

इसके अलावा देवउठनी एकादशी पर शालिग्राम और तुलसी का विवाह भी कराना चाहिए। ऐसा करने से आपका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है। आप अखंड सौभाग्यवती रहती हैं। आपकी जोड़ी सदा सलामत रहती है। पति और पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है। घर में खुशियां आती है। दुख और नेगेटिव एनर्जी दूर जाती है।

ऐसे हुई शालिग्राम की उत्पत्ति

भगवान विष्णु शालिग्राम कैसे बने इसके पीछे भी एक रोचक कथा है। एक समय की बात है। दैत्यराज जलंधर और भगवान शिव के मध्य भीषण युद्ध चल रहा था। लेकिन जलंधर का खात्मा नहीं हो पा रहा था। फिर देवताओं को भनक लगी कि जलंधर की पत्नी वृंदा के पतिव्रता धर्म के पुण्य फल स्वरूप उसे शक्ति मिल रही है। ऐसे में भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास चले गए। अब वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया। नतिजन जलंधर का वध हो गया।

जलंधर की पत्नी वृंदा विष्णु भगवान की भक्त भी थी। इसलिए जब उन्हें भगवान के छल का पता चला तो उसने क्रोध में आकर श्रीहरि श्राप दिया। उसने कहा कि आप पत्थर के बन जाएंगे। इसके बाद खुद वृंदा ने भी अपने जीवन का अंत कर लिया। विष्णुजी ने इस श्राप को स्वीकार कर खुद को शालिग्राम में बदल लिया। वहीं वृंदा को पौधे के रुप में छाया देने का आशीर्वाद दे गए। इस कारण वृंदा का जन्म तुलसी के रूप में हुआ।

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