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प्रेस से लेकर सभी अधिकारियों पर भी लगा था पहरा, 44 साल बाद फिर याद आई एमरजेंसी

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के हम नागरिक हैं और हमें इसपर बहुत गर्व होता है लेकिन ये इस देश ने इस मुकाम तक आने के लिए बहुत से दर्द झेले हैं. उसी लोकतंत्र को आज से 44 साल पहले आपातकाल भी झेलना पड़ा था. एक नई पीढ़ी तो आपातकाल के बारे में नहीं जानती लेकिन जो उस दौर के लोग हैं वे जानते हैं कि आपातकाल में देश और देसवासियों को क्या-क्या झेलना पड़ा था. किसी से बातचीत के क्रम में या किसी विमर्श में इस पीढ़ी ने आपातकात शब्द जरूर सुना होगा लेकिन 25-26 जून, 1975 की रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश पर एक ऐसा आदेश थोपा था जिसे लोगों को ना चाहते हुए भी भोगना पड़ा था. प्रेस से लेकर सभी अधिकारियों पर भी लगा था पहरा, चलिए बताते हैं क्या हुआ था उस दौरान.

प्रेस से लेकर सभी अधिकारियों पर भी लगा था पहरा

साल 1975-77 उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दो सालों तक देश को गुलाम बना लिया था. उनके द्वाारा थोपे गए आपातकाल की वजह से देशवासियों को बहुत तकलीफ हुई थी. उस समय नागरिकों के सभी मूल अधिकार खत्म कर दिए गए थे और राजनेताओं को जेल में डाल दिया गया था. अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी और पूरा देश सुलग रहा था. उस दौरान ही नसबंदी जैसे सरकारी कृत्यों के प्रति लोगों में भारी डर था. ऐसा कहा जाता है कि लोकतंत्र की यही खूबी है कि इसकी आबोहवा में रहा समाज व्यवस्था की खामियों को तुरंत दूर कर लेता है. यह आपातकाल ज्यादा दिन नहीं चला और करीब 19 महीने बाद लोकतंत्र की एक बार फिर जीत हुई और इस जीत ने कांग्रेस पार्टी को हिला दिया था.

1. 1973-75 के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ देश भर में एक अंसतोष फैल रहा था. गुजरात का नव निर्माण आंदोलन और जेपी का संपूर्ण क्रांति का नारा उनमें बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण था.

2. आर्थिक संकट और सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ छात्रों और मध्य वर्ग के उस आंदोलन से मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा था जबकि केंद्र सरकार को राज्य विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

3. साल 1974 में बिहार के छात्र आंदोलन का जयप्रकाश नारायण ने समर्थन किया और उन्होंने पटना में संपूर्ण क्रांति का नारा देते हुए छात्रों, किसानों और श्रम संगठनों से अहिंसक तरीके से भारतीय समाज को बदलने के लिए लोगों से कहा. एक महीने बाद देश की सबसे बड़ी रेलवे यूनियन राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर गई.

4. साल 1971 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के नेता राजनारायण को इंदिरा गांधी ने रायबरेली से हरा कर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दायर कर आरोप लगाया कि इंदिरा ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव में जीत हासिल की है.

5. 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहनलाल सिन्हा ने फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी को दोषी पाया और रायबरेली से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध ठहरा दिया था. उनकी लोकसभा सीट खाली हो गई और अगले छह साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई.

6. इंदिरा गांधी ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, 24 जून, 1975 को जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने हाई कोर्ट ने निर्णय को रखते हुए इंदिरा गांधी को सांसद के रूप में मिली सभी सुविधाओं से वंचित किया गया. उन्हे सांसद में वोट देने से वंचित कर दिया गया लेकिन उनको प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति मिल गई थी.

7. सियासी बवंडर, भीषण राजनीतिक विरोध और कोर्ट के आदेश के चलते इंदिरा गांधी बहुत बेचैन सी हो गई थीं. ऐसे में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने उनको देश में आंतरिक आपातकाल घोषित करने की सलाह दी थी लेकिन इसमें संजय गांधी का भी प्रभाव माना जाता है.

8. 25 जून, 1975 की रात को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री की सलाह पर इंदिरा गांधी के आपातकाल के कागज पर मोहर लगाई थी. देश में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल घोषित किया गया लेकिन लोकतंत्र को निलंबित कर दिया गया.

9. आपातकाल की ज्यादतियों को जानने के मकसद से मोरारजी देसाई सरकार ने 28 मई 1977 को शाह आयोग गठित किया जिसके अध्यक्ष जस्टिस जेसी शाह बने. शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट तीन भागों में दी थी और अंतिम भाग वाली रिपोर्ट अगस्त 1978 में सौंपी. इस रिपोर्ट के छह अध्याय, 530 पेज लोकतांत्रिक संस्थाओं और नैतिक मूल्यों के साथ हुई हिंसा की तीव्रता को बताती है और एक रिपोर्ट के अनुसार शाह आयोग ने बताया कि जिस वक्त आपातकाल की घोषणा हुई उस समय देश में आर्थिक हालात भी ठीक थे और कानून व्यवस्था भी ठीक थी.

11. साल 1971 में पारित एक विवादित कानून था जिसमें सुरक्षा एजेंसियों को असीमित शक्तियां मिली थीं. जिसके अंतर्गत बिना वारंट के लोगों को गिरफ्तार कर अनिश्चितकाल के लिए जेलों में रखा गया था.

12. सबसे ज्यादा मीडिया की आजादी पर अंकुश लगाया गया था. इस पर अंकुश लगाने के लिए इंदिरा गांधी ने इंद्र कुमार गुजराल को हटाकर विद्याचरण शुक्ल को सूचना-प्रसारण मंत्री बनाया गया था.

13. इंदिरा गांधी को संसद में दो-तिहाई बहुमत मिली और उन्होंने कई कानून बदल दिए. संविधान में संशोधन कर दिया गया और 42वां संविधान संशोधन उसी दौर में किया गया था.

14. 18 जनवरी, 977 को इंदिरा गांधी ने नए चुनाव की घोषणा करते हुए सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करा और 23 मार्च को आधिकारिक रूप से आपातकाल समाप्ति की घोषणा कर दी थी. मार्च में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों ही चुनाव हार गए. इसमें बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से कांग्रेस का खाता नहीं खुला.

15. 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को दोषी पाया था और उन्हें 6 साल के लिए पद से बेदखल कर दिया गया था. राज नारायण ने साल 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में हारने के बाद अदालत में मामला दर्ज कराया गया था और तत्कालीन जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने इससे जुड़ा फैसला सुनाया था.

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