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सूर्य और अग्नि को साक्षी मानकर हर सुबह यहाँ महिलाएँ करती हैं ये अनोखा काम, जानकर हो जाएँगे दंग

नई दिल्ली: भारत एक बहुत बड़ा विविधता से भरा हुआ देश है। यह कई राज्यों में बँटा हुआ है। यहाँ हर राज्य की अपनी संस्कृति और परम्परा है। भारत पूरे विश्व में अपनी इन्ही परम्पराओं के लिए मशहूर भी है। भारत के उत्तर में अलग संस्कृति और परम्पराओं का पालन किया जाता है तो दक्षिण में अलग। यहाँ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बोली, भाषा, खान-पान, पहनावे को लेकर भिन्नता देखी जा सकती है। इतनी भिन्नताएँ होने के बाद भी भारत एक देश है।

यह परम्पराओं के देश के रूप में भी मशहूर है। भारत में वैसे तो हर राज्य की अपनी परम्पराएँ और मान्यताएँ हैं। लेकिन आज हम आपको भारत के एक ऐसे राज्य की अनोखी परम्परा के बारे में बताने जा रहे हैं, जो भारत की राजनीति में अहम भूमिका निभाता है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं भारत के बिहार राज्य की। बिहार राज्य अपने आप में महान राज्य है। बिहार की परम्परा पूरे देश में सबसे निराली है। आपको जानकार हैरानी होगी कि बिहार का मिथिला पूरी दुनिया का इकलौता ऐसा क्षेत्र हैं, जहाँ सुबह-सुबह एक दूसरे को गीत गाकर जगाने की परम्परा है।

सुबह के स्वागत में गाया जाता है गीत:

आप में से कई लोग इस अजीबो-ग़रीब और अनोखी परम्परा के बारे में पहली बार सुन रहे होंगे। आपकी जानकारी के लिए बता दें मिथिला की इस परम्परा को पराती के नाम से जाना जाता है। धीरे-धीरे यह परम्परा लुप्त होती जा रही है, लेकिन आज भी इस परम्परा को बचाने में पुरुषों से ज़्यादा योगदान महिलाओं ने दिया है। पराती का अर्थ होता है सुबह के स्वागत में गाया जाने वाला गीत। मिथिला के लोगों की दिनचर्या इसी तरह से शुरू होती है। सुबह-सुबह अपना बिस्तर छोड़ देते हैं और गीत-संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है।

जन्म से लेकर मृत्यु तक है गाने की परम्परा:

 

ऐसा लगता है जैसे यहाँ का हर घर अपने आप में कोई बड़ा गायन केंद्र हो। गीत-संगीत और चित्रकला यहाँ के लोगों की साँसों में बसा हुआ है। यहाँ के निरक्षरों में गाने की काला के प्रति अतिशय अनुराग देखने को मिलता है। हालाँकि यहाँ साक्षर दर पिछले एक दशक की अपेक्षा काफ़ी बढ़ गया है। यह परम्परा सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। यहाँ के बुज़ुर्गों ने इस काला को संरक्षित करने की बहुत कोशिश की है। लेकिन प्रवासी मैथिलों में यह देखने को बहुत काम मिलता है। यहाँ बच्चों के जन्म से लेकर मृत्यु तक गाने की परम्परा है। जीवन के हर पल के लिए यहाँ अलग-अलग सुर-टाल और गीत-संगीत है।

यहाँ जब भी किसी के घर में मेहमान आते हैं तो स्वागत गीत गाने की परम्परा है। और जब मेहमान जाने लगते हैं तो विदाई गीत गाया जाता है। भोजन और मेहमाननवाजी के लिए अलग गीत गाया जाता है। बारह महीनों के लिए गीत माला बना हुआ है, जिसे बारहमासा कहा जाता है। बदलते ऋतु के हिसाब से सुर-टाल बदल जाते हैं। यहाँ तक की यहाँ बारिश के लिए भी अलग गीत गाया जाता है। इंद्र देवता को रिझाने के लिए जो गीत गाया जाता है, उसे जटा-जटिन कहा जाता है। मैथिली भाषा की मधुरता के बारे में बताते हुए अंग्रेज़ी भाषाविद जॉर्ज ग्रियसर्न ने लिखा था कि जब दो मैथि महिलाएँ किसी रंजिश वस आपस में झगड़ती हैं तो ऐसा लगता है जैसे वह गाना गा रही हों। इस क्रिया के दौरान वो अग्नि और सूर्य को साक्षी बनाती हैं।

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