अध्यात्म

नारद के कारण रूका शिवजी और ‘कुमारी’ का विवाह और दक्षिण छोर का कहलाया कन्याकुमारी, जाने पूरी कथा

देश के मशहूर पर्यटन स्थलों में से एक है कन्याकुमारी, जिसे तीर्थ स्थल के रूप में भी जाना जाता है। कन्याकुमारी में बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागन का मिलन भी होता है। ऐसे में ये जगह तीनों समुद्रों के संगम और अपने पौराणिक महत्व के लिए जाना जाता है। दरअसल इस स्थान के नामकरण के पीछे भी एक पौराणिक कथा है और आज हम आपको इसी नाम की पूरी कहानी बता रहे हैं। तो चलिए जानते हैं इस जगह और इसके नाम से जुड़ी ये पौराणिक कथा के बारे में..

शिवपुराण में वर्णित है ऐसी कथा

शिवपुराण में वर्णित एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक समय में बानासुरन नाम के एक राक्षस (असुर) ने देवताओं को पीड़ित कर रखा था।दरअसल उसने कठोर तपस्या कर शिवजी से ये वरदान प्राप्त कर रखा था कि उसकी मृत्यु केवल एक ‘कुंवारी कन्या’ के हाथों ही हो सकेगी.. उसे लगता था कि कोई कन्या इतनी शक्तिशाली नहीं हो सकती कि उसका वध कर सके।

वहीं जब उसके प्रकोप से तीनो लोक में हाहाकार मच गया तब उसका वध करने के लिए आदि शक्ति के एक अंश से एक कन्या को जन्मा गया। कहा जाता है कि इस कन्या का जन्म उस वक्त भारत पर राज कर रहे एक राजा के घर में हुआ। उस राजा के आठ पुत्र और यही एकमात्र पुत्री थी, राजा ने अपनी इस पुत्री का नाम ‘कुमारी’ रखा और अपने पूरे साम्राज्य को नौ हिस्सों में बांट कर दक्षिण का हिस्सा पुत्री कुमारी को दे दिया। कुमारी को शक्ति का अवतार भी माना गया है।

वहीं जब ‘कुमारी’ बड़ी हुई तो उसे भगवान शिव से प्रेम हुआ और उसने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या शुरू की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे शादी का वचन दिया। इसके बाद शिवजी और ‘कुमारी’ की शादी की तैयारियां शुरू हुई.. शिव जी बारात लेकर कैलाश से निकल भी पड़े पर इस बीच जब नारद जी को ये पता चला कि जिस कन्या का जन्म बानासुरन को मारने के लिए हुआ है, उसी से शिवजी विवाह करने जा रहे हैं तो उन्होंने इस बात की खबर देवताओं को दी।

नादर की बात सुन सभी देवताओं ने मिलकर इस विवाह को रोकने की योजना बनाई। दरअसल भगवान शिव जी ने कैलाश से आधी रात को बारात निकली ताकि सुबह विवाह के मुहूर्त पर दक्षिणी छोर तक पहुंचा जा सके। पर इससे पहले कि बारात सुबह तक कन्या के द्वार पहुंचती देवताओं ने छल करके रात के अंधेरे में ही मुर्गे से बांग लगवा दी, जिससे शिवजी को भ्रम हुआ कि वो सही मुहूर्त पर कन्या के घर नहीं पहुंच सके और फिर उन्होंने बारात वापस कैलाश की ओर लौटा दी.. जिसके कारण ये विवाह ना हो सका।

वहीं, उधर असुर बानासुरन को ‘कुमारी’ की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने ‘कुमारी’ के पास शादी का प्रस्ताव भेजा।जिससे क्रोधित होकर ‘कुमारी’ ने बानासुर को युद्ध लड़ने के लिए ललकारा और कहा कि अगर वो इस युद्ध में हार जाती हैं तो फिर उससे विवाह कर लेंगी। पर चूंकि ‘कुमारी’का जन्म ही बानासुरन का वध करने के लिए हुआ, ऐसे में जब दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ तो बानासुरन मारा गया। पर वहीं, ‘कुमारी’ हमेशा के लिए कुंवारी रह गई। इस कथा के अनुसार इसी वजह से दक्षिणी छोर का नाम कन्याकुमारी पड़ा। क्योंकि इस युद्ध और देवताओं के छल के कारण शिव का विवाह कुमारी से नहीं हो सका और बाद में उसने शिव से विवाह की इच्छा भी त्याग दी।

धार्मिक मान्यता है कि इस विवाह के लिए जो तैयारियां की गई थीं, वो सब रेत में बदल गई और इस तरह उस जगह को कन्याकुमारी कहा गया। यहां तट पर आज कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वति को कन्या के रूप में पूजा जाता है।

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