अध्यात्म

यहां गिरी थीं माता की आंखें, जहां दर्शन मात्र से पूरी हो जाती हैं भक्तों की मनोकामना

आस्था का देश कहे जाने वाले भारत में हजारों ऐसे मंदिर है जो अपने चमत्कारी शक्ति और मनभावन स्वरूप के कारण जाने जाते हैं .. ऐसे मंदिरो और देव स्थल के मूल में कोई ना कोई धार्मिक या पौराणिक मान्यता है। आज हम आपको हिमांचल के एक ऐसे ही विख्यात देवी स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं.. जहां दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। दरअसल हम बात कर रहे हैं, हिमाचल के नैना देवी मंदिर की, जो कि देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है.. जिसके बारे में मान्यता है यहां देवी सती की आंखे गिरी थी। चलिए आपको विस्तार से इस मंदिर की पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व और देवी की महिमा के बारे में बताते हैं।

नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में शिवालिक पर्वत माला पर बना हुआ है, जहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर में देवी मां का अद्भत रूप मनभावन है जिसके दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं। मंदिर के गर्भ ग्रह में तीन मुख्य मूर्तियां है, जिसमें एक ओर माता काली,  बीच में नैना देवी और एक तरफ भगवान श्री गणेश की मूर्ति हैं, वहीं मंदिर के मुख्य  द्वार पर सेवक रूप में गणेश और हनुमान विराजमान हैं । दरअसल इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानी इसका महत्व बढ़ाती है जो कि इस तरह है।

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति के इच्छा के विरूद्ध उनकी पुत्री “सती” का विवाह भगवान शिव से हुआ था, इसलिए दक्ष, शिवजी को बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे। ऐसे में एक बार जब दक्ष ने एक विशाल यज्ञ करवाया, जिसमे किउन्होंने सभी देवताओ को निमंत्रण दिया पर अपनी बेटी सती और दामाद शिवजी को आमंत्रित नहीं किया। ऐसे में जब देवी सती को उस यज्ञ के बारे में पता चला तो वे भगवान शिव के मना करने के बावजूद पिता के घर आयोजित यज्ञ में चली गई, पर वहां जब उन्होने यज्ञ में सभी देवताओ का सम्मान और अपने पति शिवजी का अपमान होते हुए देखा तो वे बेहद आहत हुईं और इसी दुख में उन्होने उस यज्ञ के हवनकुंड में अपनी आहुति दे दी।

इसके बाद जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला कि देवी सती मृत्यु को प्राप्त हो चुकी हैं तो उन्होने रौद्र रूप धारण कर लिया और देवी सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रख तांडव करना शुरू कर दिया, ऐसे में देवी के अंग धरती पर जिस-जिस स्थान में गिरे , वहीं शक्ति पीठ हो गए। उनमें से जिस स्थान पर देवी सती के आंखे गिरी , वहां नैना देवी का भव्य स्थल हो गया। तब से देवी सती की पूजा “नैना देवी” के रूप में होती है। इस मंदिर में अपने मन की मुरादें पूरी करने के लिए देवी भगवती से आशीर्वाद प्राप्‍त करने हेतु भक्त दूर-दूर से आते हैं, आप भी अपनी कामना पूर्ति हेतु और मां के दर्शन करने के लिए यहां जा सकते हैं।

चंडीगढ़ से इस मंदिर की दूरी करीब 100 किमी है और कीरतपुर साहिब से मंदिर की दूरी 30 किमी है, जिसमें से 18 किमी पहाड़ी रास्ता है। वहीं दूसरा रास्ता आनंदपुर साहिब से है, जहां से मंदिर की दूरी 20 किलोमीटर है और इसमें 8 किलोमीटर पहाड़ी रास्ता है। वैसे मां के भक्तों के लिए यहा आना कठीन नहीं है, यहां आने वाले अधिकांश श्रद्धालु ‘जय माता दी’ बोलते हुए पैदल ही पहाड़ी को पार कर चोटी पर पहुंच जाते हैं। कहते हैं कि जो यहां एक बार भी माता के दर्शन कर लेता है, वो बार-बार यहां आकर माता का आशीर्वाद लेना चाहता है।

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