अध्यात्म

बेहद ही रहस्यमय है अचलेश्वर मंदिर, इस मंदिर में की जाती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा

अक्सर लोग मंदिरों में जाकर शिवलिंग की पूजा किया करते हैं। लेकिन हमारे देश में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां पर शिवलिंग की पूजा करने की जगह भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती हैं। इस मंदिर का नाम अचलेश्वर महादेव मंदिर है और दूर-दूर से लोग इस मंदिर में आकर भगवान शिव के अंगूठे के निशान की पूजा करते हैं।

कहां पर है ये मंदिर

अचलेश्वर महादेव मंदिर राजस्थान के हिल स्टेशन माउंट आबू से 10 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है और ये मंदिर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर बनें एक किले के पास है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के अंगूठे पर ये पर्वत टिका हुआ है और जिस दिन मंदिर में बनें भगवान शिव के अंगूठे का निशान लुप्त हो जाएगा, उस दिन ये पर्वत भी नष्ट हो जाएगा। भगवान शिव के इस अंगूठे के निशान के पास ही एक कुंड भी बना हुआ है और ये कुंड बेहद ही खास है। क्योंकि ये  कुंड कभी भी भरता नहीं है।

पंडितों के अनुसार इस कुंड में कितना भी पानी डाल दिया जाए, लेकिन ये कुंड कभी भी नहीं भरता है। इस कुंड में डाले जानेवाला पानी कहां चले जाता है ये एक रहस्य बना हुआ है।

मंदिर से जुड़ा इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार अर्बुद पर्वत पर कई बेल रहा करते थे और एक दिन अचानक से ये पर्वत हिलने लग गया। पर्वत हिलने के कारण इस पर्वत पर मौजूद बेलों की जान खतरे में पड़ गई। वहीं शिव जी हिमालय में अपनी तपस्या में लीन थे। लेकिन जैसे ही ये पर्वत हिलने लगा शिव जी की  तपस्या भंग हो गई और उन्हें नंदी की चिंता होने लग गई। क्योंकि नंदी भी इसी पर्वत पर मौजूद थे। इस पर्वत को गिरने से बचाने के लिए शिव जी ने हिमालय से ही अपना अंगूठा इस पर्वत पर पहुंचा दिया और इस पर्वत को गिरने से बचा लिया। इसलिए कहा जाता है कि ये पर्वत भगवान शिव के अंगूठे पर टीका हुआ है।

कुछ वर्षों बाद इस जगह पर भगवान शिव का मंदिर बनाया गया और इस मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे का निशान आज भी मौजूद है और लोग इस निशान की पूजा किया करते हैं।

बेहद ही सुंदर है मंदिर

इस मंदिर की शिल्पकला बेहद ही सुंदर है और इस मंदिर के परिसर में कई सारे भगवानों की मूर्तिया भी मौजूद हैं। अचलेश्वर महादेव मंदिर के अंदर द्वारिकाधीश मंदिर भी बना गया है और कृष्ण जी की मूर्ति भी इस मंदिर में रखी गई है। जबकि मंदिर के गर्भगृह के बाहर नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य और राम भगवान की मूर्ति भी रखी गई है और ये मूर्तियां काले पत्थर पर बनाई गई हैं। ये मंदिर काफी बड़ा है और ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर के पास ही अचलगढ़ किला भी मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि इस किले को परमार राजवंश द्वारा बनाया गया था। जिसके बाद महाराणा कुम्भा ने इस किले का फिर से निर्माण करवाया था और इस किले का नाम  1452 में अचलगढ़ रख दिया था।

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