अध्यात्म

इस तरह मनाया जाता है आस्था का महापर्व छठ पूजा, जानिए कब से तक मनाया जाएगा ये पर्व

भारत में त्योहारों का कोई अंत नहीं है, एक खत्म होता है तो दूसरा शुरु हो जाता है और कुछ समय बाद तीसरा भी लाइन में रहता है. दीपावली के बाद भाईदूज, फिर आता है छठ पूजा जो प्रथा बिहार से शुरु होते हुए पूर्वांचल और फिर धीरे-धीरे हर जगह फैल रही है. अब तो विदेशों में भी बहुत से लोग छठ पूजा के बारे में जानने लगे हैं. बिहार की गलियों से निकलकर झारखंड फिर पूर्वांचल और अब देश में हर कोई छठ पूजा को जानते हैं और इसकी महत्वता को समझते हैं. इस तरह मनाया जाता है आस्था का महापर्व छठ पूजा, इस बारे में आपको भी जानना चाहिए आखिर क्यों और कैसे की जाती है छठ पूजा.

इस तरह मनाया जाता है आस्था का महापर्व छठ पूजा

कार्तिक महीने में भगवान सूर्य की पूजा करना अच्छा माना जाता है. शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को छठ पूजा मनाने का विधान प्रचलित है. यह पूजा मुख्य रूप से बिहार और झारखंड से शुरु हुई और फिर धीरे-धीरे हर तरफ फैल गई. अंग देश के महाराज कर्ण सूर्य देव के भक्त थे और सूर्य पूजा का प्रभाव उनके ही इलाकों में दिखता था. कार्तिक महीने में सूर्य अपनी नीच राशी में होता है और सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है और स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान नहीं करती.

इस बार छठ पूजा 12 तारिख को ‘नहा-खा’ शुरु होता है और फिर 13 नवंबर की शाम को डूबते सूरज की पूजा की जाएगी और 14 नवंबर की सुबह उगते हुए सूर्य देव की पूजा की जाएगी. इसके बाद सभी प्रसाद वितरण करते हैं और यह पूजा समाप्त हो जाती है. ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा बहुत ही कठिन व्रत होता है और इसे करने वाले में छठ मईया की शक्ति आ जाती है. सूर्य देव की भक्ति बहुत ही खास होती है और अगर इसका वैज्ञानिक रूप देखा जाए तो सूर्य की भक्ति करने से व्यक्ति अपनी ऊर्जा और स्वास्थ्य में बेहतर रहता है.

ऐसे की जाती है छठ पूजा

इस व्रत में शुद्धता बहुत ज्यादा देखी जाती है. इसमें ‘नहा-खा’ वाले दिन लौकी और चावल से बनी खीर ग्रहण की जाती है. इसके बाद अगले दिन आटे और देसी घी में बना ठेकुआ बनाया जाता है और व्रत रखने वाला नहा खा वाली रात से लेकर सुबह की सूर्य पूजा तक भूखा रहता है. इसमें पूजा में ठेकुआ और मौसमी फल का प्रसाद चढ़ाया जाता है और दूध से सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. इस व्रत को रखने से संतान की प्राप्ति होती है और संतान को कोई भी कष्ट नहीं होता. इसके अलावा जिसकी कुंडली में सूर्य दोष पाया जाता है इस व्रत से वो दोष मिट जाता है. जो भी व्रत रखता है उसे अपना स्वास्थ्य भी अच्छा रखना होता है वरना व्रत रखने वाले को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.
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