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दशहरी आम : 200 साल का इतिहास, सरकार ने दिया ऐतिहासिक वृक्ष का दर्जा, कहते है ‘मदर ऑफ़ ट्री’

आम दुनियाभर में पसंद किया जाता है. फलों का राजा आम हर किसी को काफी पसंद आता है. लोग इसे बड़े चाव के साथ खाना पसंद करते हैं. कई लोग इसे सीधे खाना पसंद करते हैं तो कई लोगों को इसका रस भाता है. माना जाता है कि देशभर में आम की 1500 किस्में है.

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देशभर में अलग-अलग हिस्सों में आम की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती है. हर आम अपने आपमें ख़ास होता है. आपने कभी न कभी दशहरी, लंगड़ा और तोतापरी आम के बारे में जरुर सुना होगा. लंगड़ा आम का इतिहास तो करीब 300 साल पुराना है.

300 साल पुराना आम आमों का राजा माना जाता है. इसका स्वाद और मिठास हर किसी के दिल पर राज करती है. वहीं आम की सबसे लोकप्रिय किस्म में दशहरी आम भी शामिल है. दशहरी आम भी बेहद ख़ास है. इस आम का हिस्सा करीब 200 साल पुराना बताया जाता है.

दशहरी आम का नाम कई बार आपने सुना होगा. फिलहाल गर्मी का सीजन चल रहा है तो आम की मांग काफी बढ़ चुकी है. लंगड़ा आम के बाद लोगों के बीच दशहरी आम भी काफी लोकप्रिय है. तो आज हम आपको दशहरी आम के बारे में विस्तार से बताएंगे. आइए जानते है कि इसकी शुरुआत कहां से हुई थी.

दशहरी आम की शुरुआत उत्तर प्रदेश के काकोरी के एक गांव से हुई थी. काकोरी के एक गांव दशहरी के जयदीप यादव ने बताया कि, दशहरी आम का पहला पेड़ करीब 200 साल पहले लगाया गया था. ख़ास बात यह है कि पेड़ अभी भी मौजूद है. इसमें दोबारा आम आ रहे है.

कड़ी सुरक्षा में रहता है दशहरी आम का पेड़

दशहरी आम का पेड़ कड़ी सुरक्षा के बीच रहता है. फिलहाल इसकी देखभाल गांव के समीर जैदी करते हैं. सुरक्षा के लिहाज से पेड़ के चारों तरफ तारों का घेराव किया गया है. बता दें कि इस पेड़ को “मदर ऑफ ट्री” भी कहा जाता है. इसे दूर दराज से देखने लोग आते है और इस दो सदी पुराने पेड़ के साथ लोग तस्वीरें भी खिंचवाते है.

सरकार ने दिया ऐतिहासिक वृक्ष का दर्जा

काकोरी के दशहरी गांव में मौजूद दशहरी आम का पेड़ सरकार की नजर में भी आया. सरकार ने इस पेड़ को ऐतिहासिक वृक्ष का दर्जा दिया है. काकोरी के साथ ही लखनऊ का मलिहाबाद भी दशहरी आम के लिए काफी मशहूर है. यहां पर दूर दूर तक आम के बगीचे ही बगीचे नजर आते है.

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