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जब लाखों की भीड़ के सामने लता जी ने उदित को दिया था ख़ास तोहफा, देख कर रो पड़े थे गायक

लता मंगेशकर जी का नाम संगीत जगत और हिंदी सिनेमा में बड़े आदर-सम्मान के साथ लिया जाता है. लता जी चाहे हमारे बीच नहीं है हालांकि वे अपनी आवाज के चलते सदा जीवित रहेगी. लता जी के चाहने वाले दुनियाभर में मौजूद है. उनके प्रशंसकों में दिग्गज और मशहूर गायक उदित नारायण भी शुमार है.

lata mangeshkar

उदित नारायण को लता जी के साथ गाने का मौका भी मिला है. लता जी के साथ उन्होंने ‘दिल तो पागल है’, ‘जादू तेरी नजर’, ‘भोली सी सूरत’, ‘तू मेरे सामने’ जैसे अनगिनत गाने गाये थे. दोनों की जोड़ी सफल रही थी. उदित जी ने हाल ही में एक ख़ास बातचीत में लता जी को लेकर काफ़ी कुछ कहा है. उन्होंने लता जी संग फोन पर हुई आख़िरी बातचीत के बारे में भी बताया है.

उदित नारायण कहते है कि, ”मैं तो भाग्य लिखवा कर लाया था, जो सरस्वती के साक्षात रूप लता दीदी के साथ मुझे गाने का अवसर प्राप्त हुआ. उनकी आवाज से तो मैं बचपन में ही मंत्रमुग्ध हो गया था, जब उनके गीतों को सुनते हुए सुध-बुध खोकर मीलों पैदल चला करता था”.

उन्होंने आगे कहा कि, ”दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के गाने की रिकॉर्डिंग में मेरी नर्वसनेस को दूर करने के लिए मुझे ऐसे मजेदार जोक्स सुनाए कि मैं हंस-हंस कर लोट-पोट हो गया. लता जी ने जब कहा कि लास्ट सिनेमैटिक वॉयस इज उदित नारायण, तो वो मेरे लिए सबसे बड़ा अवॉर्ड था”.

आगे उन्हों लता जी संग अपनी पहली मुलाकात के बारे में बताते हुए कहा कि, ”जब मैं स्ट्रगल कर रहा था, उस दरम्यान फिल्म सेंटर स्टूडियो में, महबूब स्टूडियो में, बड़े-बड़े म्यूजिक डायरेक्टरों की रिकॉर्डिंग होती थी तो मैं वहां बहुत मुश्किल से जा पाता था. दूर से उनको देखा करता था. किस तरह माइक के सामने आती हैं, किस तरह वह गाती हैं, एक तरह से मुझे सपना जैसा लगता था.मगर उनके गाने तो मैं बचपन से सुनता आ रहा था. जब मैं बहुत छोटा था, तब गांव में बहुत कम लोगों के पास, बड़े-बड़े जमींदारों के पास ट्रांजिस्टर हुआ करता था.

वहां से मैं उनके गाने सुना करता था, रेडियो से. फिर लाऊडस्पीकर का जमाना आया. मैं बैलगाड़ी के पीछे पड़ा रहता था. लाऊडस्पीकर पर उनकी आवाज को सुनते-सुनते कई मील तक अकेला चला जाता था. मैं छोटा सा बच्चा था 5-6 साल का, उनकी आवाज मुझे आकर्षित करती थी.

बाद में जब सात-आठ-दस साल का हुआ तब समझने लगा कि ये लता जी गा रही हैं, ये रफी साहब गा रहे हैं. तब मुझे लगा क्या मैं भी ऐसा हो सकता हूं? क्या उनके पास जाने का मौका मिल सकता है? उनके साथ बात करने का मौका मिल सकता है? इस तरह से वहां से मेरा सपना शुरू हुआ गायक बनने का”.

उदित कहते है कि, ”पहला गाना पंचम जी ने उनके साथ गवाया था, बड़े दिलवाला फिल्म थी, गाने के बोल थे, ‘जीवन के दिन छोटे सही, हम भी बड़े दिलवाले (गाते हुए). किशोर दा ने सोलो गाया है शायद और लता जी आईं, तो चार-चार लाइन, दो-दो लाइन मेरी बीच में आती हैं.

वहां से शुरुआत की मैंने, फिर तो यश चोपड़ा ने डर में, ‘तू मेरे सामने मैं तेरे सामने, फिर दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे में दो-तीन गाने फिर सिलसिला चलता रहा. फिर ऐसी-ऐसी फिल्मों में गाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ की क्या कहूं ? तुम क्या मिले जाने जाना, में लक्ष्मण जी का म्यूजिक था. भट्ट साहब की फिल्म थी, सातवां आसमान. ‘तुम क्या मिले जाने जां’ (गाते हुए), ये गाना था. बड़ा अच्छा गाना था”.

अपने जन्मदिन का किस्सा सुनाते हुए उदित नारायण ने कहा था कि, ”शो हों या गाने दीदी को जब भी मौक़ा मिलता वे मुझे जरूर शामिल करती थीं. बेंगलुरू में हम लोग शो कर रहे थे. फर्स्ट दिसंबर था और उस दिन मेरा बर्थडे था. मदन मोहन साहब के बेटे संजीव कोहली ने दीदी को जाकर बता दिया कि मेरी सालगिरह है.

दीदी ने संजीव कोहली को एक सोने की चेन दी और कहा कि इसे उदित को मेरी तरफ से भेंट दे दीजिए. तीन लाख के विशाल जनसमूह के बीच उन्होंने मुझे सोने की चेन देकर जन्मदिन की मुबारकबाद दी थी”.

वे आगे कहते है कि, ”उन्हें हमेशा मेरे करियर की फिक्र रहती थी. एकाध बार उन्होंने कहा था, आप लोगों को आजकल कम काम मिलता है, तो मैंने कहा था, इतना कुछ दिया है संगीत ने. आपके साथ गाने का मौका मिला, तो मैं स्वयं को धन्य मानता हूं”.

वहीं लता जी संग फोन पर हुई आख़िरी बातचीत के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि, ‘उनके आखिरी समय में मैंने कई बार उनसे बात की. फरवरी में वो गईं और जनवरी में मैं उनके एलएम स्टूडियो में गया था, वहां मयूरी जी के जरिए मैंने दीदी के घर फोन लगाया, तो कम से कम आधे घंटे तक फोन पर मुझसे बात करती रहीं. मैंने पूछा, ‘दीदी, आप ठीक हैं?’ तो बोलीं, ‘मुझे सब दिल से चाहते हैं, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, मुझे कुछ नहीं होगा अभी”.

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